Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 70
________________ विश्वासघात अर्थात् विसेमिरा की कथा (३१) विश्वासघात अर्थात् विसेमिरा की कथा ५९ (9) विशाल शाल नगरी का राजा नन्द अत्यन्त प्रतापी राजा था । उसके समान ही एक महान् विद्वान बहुश्रुत नामक उसका मंत्री था । विजयपाल नामक उसका पुत्र भी अत्यन्त विनयी था। उसकी रानी भानुमती ने उसको मुग्ध कर दिया था। वह उससे तनिक भी दूर 'नहीं रह सकता था । वह उसे सदा साथ ही रखता था । राजा यदि शिकार पर जाता तो भी रानी को साथ ले जाता और यदि वह राज दरवार में बैठता तो भी रानी को पास बिठाता था । यह बात मंत्री को अच्छी नहीं लगी। अतः उसने एक दिन राजा को एकान्त में कहा, 'राजन्! आप मेरे अन्नदाता हैं। सच्चे सेवक का कर्त्तव्य है कि स्वामी यदि भूल करे और मंत्री उसे जानता हो फिर भी उसे न कहे तो वह कृतघ्न कहलाता है। आपको रानीजी प्राण से भी अधिक प्रिय हैं, यह मैं जानता हूँ, फिर भी दरबार में आप उन्हें अपने पास बिठाओ यह उचित नहीं है। यदि आपको उनका विरह असत्य हो तो उनका एक सुन्दर चित्र आप अपने पास रखें उसमें कोई आपत्ति नहीं है | (२) राजा ने भानुमती का एक सुन्दर चित्र बनवाया । यदि वह चित्र पड़ा हुआ हो और देखने वाला यदि गौर से न देखे तो प्रतीत होगा कि मानो राजा-रानी ही बैठे हैं । उक्त चित्र राजा नन्द ने अपने गुरु शारदानन्दन को बताया। महा पुरुषों की हाँ में हाँ कहने वाले तो स्थान स्थान पर मिलते हैं परन्तु यदि स्वयं को उचित नही प्रतीत हो तो 'नहीं' कहने वाले तो कोई तेजस्वी पुरुष ही होते हैं। शारदानन्दन बुद्धिमान एवं तेजस्वी थे । वे चित्र देखते ही वोले, 'राजन् ! चित्र तो चित्रकार ने रानीजी हैं वैसा ही बनाया है परन्तु उनकी बाँयी जाँघ में तिल है वह इस चित्र में उसने चित्रित नहीं किया ।' राजा तुरन्त चौंक पड़ा, 'रानी की जाँघ में तिल है उसका शारदानन्दन को कैसे पता लगा ? क्या भानुमती शारदानन्दन के साथ दुराचार में लिप्त रही होगी ? स्त्री का क्या विश्वास ?' राजा ने शारदानन्दन को रानी का प्रेमी मान लिया और उसने उसका

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