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विश्वासघात अर्थात् विसेमिरा की कथा
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मैं 'भूखा हूँ, तू मुझे बन्दर दे दे । वन्दर का तू क्या विश्वास करता है ? बन्दर के समान कोई चंचल प्राणी नहीं है और चंचल चित्तवाला व्यक्ति कव प्रसन्न हो जाये और कब शत्रु हो जाये, उसका थोडे ही विश्वास है ?"
राजकुमार ने बन्दर को गोद में से नीचे गिरा दिया, परन्तु जिसका भाग्य ठीक हो उसका बाल बाँका थोड़े ही होता है ? गिरते-गिरते बन्दर ने बीच की दूसरी डाली पकड़ ली और बोला, 'राजकुमार तूने मुझे ऐसा ही बदला दिया न ? मैं तेरे विश्वास पर तेरी गोद में सोया था, तूने मेरे साथ विश्वासघात किया ? राजकुमार! सब पापों की अपेक्षा विश्वासघात का पाप भयंकर है।' प्रातः होने पर बन्दर के भीतर विद्यमान व्यन्तर ने राजकुमार को पागल कर दिया और वह 'विसेमिरा' बोलने लगा ।
(४)
'विसेमिरा विसेमिरा' बोलता हुआ राजकुमार विजयपाल विशाल नगरी के जंगल में आया । राजा, मंत्री आदि सब एकत्रित हुए और सोचने लगे कि 'इस राजकुमार को हुआ क्या?' शिकार में साथ गये राजसेवकों को पूछा कि 'राजकुमार को यह क्या हुआ है ?' उन्होंने कहा, 'कल सायं राजकुमार ने शुकर का पीछा किया था । हम सब उनसे अलग पड़ गये थे । वे रात्रि में वन में रहे और हम भी उन्हें खोजते रहे। इतने में जैसे आपने इन्हें देखा वैसे हमने भी इन्हें 'विसेमिरा विसेमिरा' बोलते हुए देखा है । इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते । '
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वाघ बोला, 'बंदर! इस राजकुमार को तूं मुझे दे दे. यह मेरा भक्ष्य है. मनुष्य का अधिक विश्वास मत रख!
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