Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 73
________________ ६२ सचित्र जैन कथासागर भाग उस समय राजा नन्द को बुद्धिमान शारदानन्दन का स्मरण हुआ। वे यदि आज होते तो इसका अवश्य ही मुझे सच्चा निदान बताते, क्योंकि उनकी बुद्धि अगम-निगम की ज्ञाता थी, परन्तु उनका मैंने वध करवा दिया, अब क्या हो सकता है ? राजा ने सम्पूर्ण नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि 'राजकुमार को स्वस्थ करने वाले व्यक्ति को राजा आधा राज्य प्रदान करेंगे ।' परन्तु कोई भी आधा राज्य लेने के लिए तत्पर नहीं हुआ । मंत्री ने राजा को कहा, 'राजन् ! राजकुमार चंगा (स्वस्थ) हो न हो यह तो उसके भवितव्यता की बात है, परन्तु मेरी पुत्री इस सम्बन्ध में कुछ अच्छा जानती है। वह तलघर में ही रहती है । उसे वतायें ।' कर ।' (५) 'विसेमिरा विसेमिरा' बोलने वाले राजकुमार को लेकर राजा तलघर में आया । मंत्री बोला, 'पुत्री ! राजकुमार के रोग का निदान करके राजा एवं प्रजा पर अनुग्रह पर्दे के पीछे छिपे शारदानन्दन ने कहा, - २ - - विश्वास प्रतिपन्नानां, वंचने का विदग्धता । अंकमारुह्य सुप्तानां हंतुं किं तब पौरुषम् ? | १॥ विश्वास रखने वाले को ठगने में क्या चतुराई है ? गोद में सोये हुए को मारने में क्या पराक्रम है ?" मंत्र का प्रभाव होने पर जिस प्रकार विष की प्रबलता कम हो जाती है उसी प्रकार 'विसेमिरा विसेमिरा' बोलने वाला राजकुमार स्तब्ध होकर नेत्र फाड़ कर यह श्लोक श्रवण करता रहा और श्लोक पूर्ण होने पर 'सेमिरा सेमिरा' बोलने लगा । पर्दे के पीछे से शारदानन्दन बोले सेतुं गत्वा समुद्रस्य गंगासागरसंगमे । ब्रह्महा मुच्यते पापात् मित्रद्रोही न मुच्यते । । 'सेतु (राम द्वारा निर्मित समुद्र की पाल ) देखने से तथा गंगा एवं सागर के संगम में स्नान करने से ब्रह्महत्या करने वाला अपने पाप से मुक्त होता है, परन्तु मित्र का संहार करने का अभिलाषी व्यक्ति सेतु को देखने से अथवा संगम में स्नान करने से शुद्ध नहीं होता ।' 'सेमिरा सेमिरा' बोलता हुआ राजकुमार यह श्लोक श्रवण करने के पश्चात् 'मिरा मिरा' बोलने लगा । राजा को अब विश्वास हो गया कि राजकुमार अब अवश्य स्वस्थ होगा । इतने में पर्दे के पीछे से तीसरे श्लोक का उच्चारण हुआ

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