Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 51
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ __ (२८) तीन कदम अर्थात् विष्णुकुमार मुनि (१) उज्जयिनी के राजा वर्म को जैन धर्म के प्रति रुचि थी। उसके नमुचि नामक एक मंत्री था जो अत्यन्त ही बुद्धिमान एवं दूरदर्शी था, परन्तु उसे जैन धर्म के प्रति द्वेष था। __ नगरी में सुव्रताचार्य का पदार्पण हुआ ! राजा सपरिवार वन्दनार्थ गया। शर्म ही शर्म में नमुचि भी राजा के साथ वहाँ आया। लौटते समय उसने आचार्यश्री के साथ चर्चा चलाई कि ब्राह्मण पवित्र हैं और ये जैन साधु अपवित्र हैं। आचार्यश्री ने यताया कि जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं वे पवित्र हैं और जो ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते वे अपवित्र हैं। इस प्रकार नमुचि ने जो चर्चा छेडी उस में उसे मुँह की खानी पड़ी। नमुचि स्वभाव का क्रोधी और डंक रखने वाला था। चर्चा में अपना पराभव होने के कारण अर्द्ध रात्रि के समय उठ कर वह आचार्य को पीटने के लिए गया परन्तु शासनदेवी ने उसे स्तंभित कर दिया। उसकी सम्पूर्ण नगर में निन्दा हुई कि कैसा क्रूर एवं धर्म-द्वेषी मंत्री है। नमुचि को अय उज्जयिनी में रहना उचित नहीं प्रतीत हुआ, जिससे एक रात्रि को वह किसी को कहे विना ही नगरी छोड़ कर हस्तिनापुर चला गया। (२) उस समय हस्तिनापुर में पद्मोत्तर राजा का शासन था। राजा के विष्णुकुमार एंव महापद्म नामक दो पुत्र थे । नमुचि ने हस्तिनापुर में कदम रखते ही सिंहबल नामक एक शत्रु का पराभव किया। परिणाम स्वरूप वह महापद्म का प्रेमपात्र वन गया। महापद्म ने उसे उसी समय कहा कि, 'नमुचि! तु जो माँगे वह मैं तुझे देने के लिए प्रस्तुत हूँ।' उस समय तो नमुचि ने यही कहा कि अवसर आने पर देखूगा । तत्पश्चात् वह नगर का मंत्री बन गया। (३) राजा पद्मोत्तर के दो रानियों थीं - ज्वालादेवी एवं लक्ष्मी । ज्वालादेवी को जैन

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