Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 61
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ की हमारे घर अमानत रखी हुई थी। वह सामान्य सोने की नहीं थी। उसमें गुप्त रूप से रत्न जड़े हुए थे। अव जव राजा माँगेगा तव क्या उत्तर देंगे?' ___खलासी ने यह बात सुन ली और उसने तुरन्त नदी में डुबकी लगाई। कटोरी की खोज की तो वह नदी में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा की गोद में पड़ी थी। खलासी उसे बाहर निकाल लाया और लाकर वणिक को दे दी। नाव सामने के तट पर आ गई। वणिक दम्पति ने जिनालय में पूजा-अर्चना-भक्ति की। उस समय खलासी ने वंकचूल को यह सव वात बताते हुए कहा कि 'नदी में पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा है।' वंकचूल अत्यंत प्रसत्र हुआ। उसने खलासी को बहुत पुरस्कार देकर उसके द्वारा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा वाहर निकलवाई और उसे स्वयं द्वारा निर्मित जिनालय के वाह्य मण्डप में रखवा दिया। नूतन जिनालय का निर्माण प्रारम्भ हुआ । जिनालय वन कर तैयार हो गया। प्रतिष्ठा के समय उस वाहर रखी प्रतिमा को उठाने लगे तो प्रतिमा नहीं उठी। अतः उस प्रतिमा को वहीं रहने दिया और आज भी वह वहीं रखी वंकचूल को जानने की जिज्ञासा थी कि यह पार्श्वनाथ की प्रतिमा नदी में कहाँ से आई और यहाँ किसने रखी होगी? उसने एक बार सभा में भी प्रश्न पूछा कि 'इस प्रतिमा का कोई वृत्तान्त जानता हो तो बताये।' एक वयोवृद्ध खलासी ने कहा, 'पहले एक प्रजा-पालक राजा था। जब वह युद्ध करने के लिए संग्राम-भूमि में गया तव उसकी रानी को लगा कि राजमहल में रहने में खतरा है। अतःएक स्वर्ण-रथ और दो प्रतिमा लेकर चर्मणवती नदी के मध्य में उसने निवास किया। रानी नित्य जिनेश्वर भगवान की प्रतिमा की पूजा करती थी, परन्तु उसने अचानक सुना कि युद्ध में राजा का देहान्त हो गया है जिससे रानी को अत्यन्त दुःख हुआ और वह रथ एवं प्रतिमाओं सहित नदी में कूद पड़ी। अन्त में शुभ अध्यवसाय के कारण इस प्रतिमा के अधिष्ठायक देव के रूप में उत्पन्न हुई है। वंकचूला यह पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा नदी में से निकली है परन्तु अभी नदी में एक अन्य प्रतिमा तथा स्वर्ण-रथ होना चाहिये। वंकचूल ने स्थान-स्थान पर खलासियों को नदी में उतारा परन्तु दूसरी प्रतिमा एवं रथ उनके हाथ नहीं आया। वंकचूल कभी कभी उसमें नाट्यारंभ सुनता जिससे सम्पूर्ण पल्ली गूंज उठती थी और वह प्रतिमा को देखता इतने में तो सव अदृश्य हो जाता। ___वंकचूल उस जिनालय का परम पूजक एवं उपासक वना । तीर्थ तो भगवान महावीर स्वामी का था, परन्तु वाह्य मण्डप में रखी हुई पार्श्वनाथ की प्रतिमा महावीर स्वामी की प्रतिमा से लघु होने से लोगों ने उसका चेल्लण-बालक पार्श्वनाथ नाम रखा । इसलिये समय व्यतीत होते होते उक्त तीर्थ चेल्लण पार्श्वनाथ के नाम से विख्यात हुआ।

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