Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 58
________________ चार नियमों से ओत प्रोत बँकचूल की कथा ४७ हैं अतः पहले ही हिंसा नहीं करनी, असत्य नहीं बोलना, चोरी नहीं करना आदि कहेंगे । इनमें से कुछ भी आप मुझे मत कहना' वंकचूल ने स्पष्ट करते हुए कहा । 'यंकचूल ! धर्मोपदेश देने वाला साधु अगले व्यक्ति की योग्यता - अयोग्यता समझ कर कुछ कहता है । तू पालन कर सके ऐसे ही तुझे मैं चार नियम देता हूँ । १. तुझे कोई भी अनजान फल नहीं खाना, २. किसी पर प्रहार करना पड़े तो पाँच-सात कदम पीछे हट कर करना, ३ . किसी भी राजा की रानी के साथ विषय-भोग नहीं करना और ४. कौए का माँस नहीं खाना ।' आचार्य इतना कह कर मौन रहे। वंकचूल तनिक विचार में पड़ गया, 'खाने की सब छूट है, परन्तु अनजान फल नहीं खाने का ही नियम है। इसमें क्या बुरा है ? अनजान फल से किसी दिन मारे जा सकते हैं। चोरी करने में हिंसा करनी पड़े उसका कोई निषेध नहीं है । केवल प्रहार करना हो तो पाँच-सात कदम पीछे हट कर प्रहार करना है। यह तो ठीक है । विचार करने का समय मिलेगा। रानी के साथ विषय-भोग नहीं करने का नियम ग्रहण करना भी क्या चुरा है? इससे तो उग्र शत्रुता नहीं होती । निन्दनीय कौए का माँस क्यों खाना पड़े?' वह बोला, 'महाराज ! चारों नियम मैं स्वीकार करता हूँ। ये नियम मैं अवश्य पालन करूँगा ।' नियम ग्रहण करते समय वकचूल गुरु महाराज के समीप आया और गुरु महाराज ने भी माना कि जंगली पल्ली का वर्षावास (चातुर्मास ) भी उपकारक सिद्ध हुआ है । ऐसा छोटा नियम आज होगा तो कल स्वतः ही यह बड़े नियम में आयेगा । (३) एक वन की घनी झाड़ी में चार लुटेरे बैठे थे। उनके सामने स्वर्ण, हीरे, मोती एवं जवाहरात के ढेर पड़े थे। इन चारों लुटेरों में एक वकचूल था । उसने साथी लुटेरों से कहा, 'इस स्वर्ण और इन हीरों को कोई काट कर नहीं खाया जा सकता। कुछ खाने के लिए लाओ। जोर की भूख लगी है।' साथी वन में इधर-उधर फिरे और सुन्दर, सुकोमल, दिखने में अच्छे लगने वाले फल ले आये। ये फल सुन्दर थे, उनकी सुगन्ध भी मोहक थी और खाने वालों को जोर की भूख भी लगी थी। वे चारों साथी खाने वैठे तय वकचूल वोला, 'रूको, इस फल का नाम क्या है ?' तब कोई, 'पपीते जैसा प्रतीत होता है, परन्तु पपीता तो नहीं है ।' दूसरा बोला, 'यह तो जंगल की ककड़ी प्रतीत होती है ।' तीसरे ने कहा, 'नहीं नहीं, यह तो समस्त फलों से सुन्दर होने के कारण अमृतफल- अमरफल होगा ।' वंकचूल ने कहा, 'यह बात नहीं है, मैं अनजान, अपरिचित फल नहीं खाता, अतः मैं नहीं खाऊँगा ।' दूसरों ने कहा, 'तुमको नहीं खाना हो तो कोई बात नहीं, हम तो खायेंगे ।'

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