Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 53
________________ सचित्र जैन कथासागर भाग - २ 'महाराज! इस समय मैं राजा हूँ। मैं यज्ञ कर रहा हूँ उसमें सवने आशीर्वाद प्रदान किये और मेरे इस कार्य की सबने प्रशंसा की, परन्तु तुमने क्यों कुछ नहीं किया?' गुरु बोले, 'हिंसा की हम प्रशंसा क्यों करें? इस यज्ञ में हिंसा हो रही है। हम उस हिंसा से दूर हैं।' नमुचि ने कहा, 'महाराज! जिस राज्य में यज्ञ हो राज्य में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को उस राजा और उसके धर्म का अनुकरण करना पड़ता है । यह यज्ञ है, इसका अनुसरण न करना हो तो चले जाओ।' __ सुव्रताचार्य ने कहा, 'इस समय हमारा यहाँ वर्षावास होने से हम अन्यत्र कैसे जा सकते हैं?' __ 'महाराज, मैं कुछ नहीं जानता। सात दिनों में हस्तिनापुर और उसकी सीमा खाली करो। सातवें दिन यदि तुम में से किसी को भी देखा तो एक भी जीवित नहीं बचेगा यह स्मरण रखना।' क्रोध में आग बबूला होते हुए नमुचि ने कहा। सुव्रताचार्य एवं शिष्यों ने विचार किया कि सर्वत्र नमुचि का शासन है । सात दिनों में कहाँ जायें? एक लब्धिवन्त साधु को मेरु पर्वत पर विराजमान विष्णुकुमार के पास भेजा। विष्णुकुमार आकाशमार्ग से हस्तिनापुर आये । अनेक वर्षों के पश्चात् हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी सर्व प्रथम नगर में आया जान कर प्रजा, धनवानों और अन्य राजाओं ANTAL Vit.HTRA (SHREEHIMIRL 14-1111 DAANI F TOHIDHHHHHill LORONSUR trainierereiner! LISH A TINA RARTA । नीच नमुचि ने मुनियों से कहा - राजा के धर्म का अनुकरण करना, राज्य में रहने वालो की फरज है! यदि स्वीकार नहीं है तो इस देश से चले जाओ!

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