Book Title: Jain Katha Sagar Part 1
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 52
________________ तीन कदम अर्थात् विष्णुकुमार मुनि ४१ धर्म के प्रति राग था और लक्ष्मी का राग ब्राह्मण धर्म के प्रति था । हस्तिनापुर में आश्विन माह में रथयात्रा निकलती थी । ज्वालादेवी कहती कि रथयात्रा में मेरा रथ पहले रहे और लक्ष्मी कहती कि मेरा रथ पहले रहे। राजा ने यह छोटा विवाद बड़ा रूप न ले ले यह सोच कर रथयात्रा ही वन्द कर दी । यह बात महापद्म को उचित प्रतीत नहीं हुई जिससे वह हस्तिनापुर छोड़ कर परदेश चला गया । महापद्म भविष्य में चक्रवर्ती बनने वाला था, अतः वह जहाँ गया वहाँ उसे राज्यलक्ष्मी एवं विद्याधर कन्याएँ मिलीं। देखते ही देखते वह महा प्रतापी सिद्ध हुआ । पद्मोत्तर राजा ने उसे हस्तिनापुर बुलाया और उसकी इच्छानुसार सर्व प्रथम जैन-रथ आगे रख कर रथयात्रा निकाली । (४) कुछ समय के पश्चात् सुव्रताचार्य का हस्तिनापुर में आगमन हुआ । नमुचि तो उन्हें देखकर दुःखी हुआ परन्तु आचार्यश्री को उसके प्रति कोई द्वेष नहीं था । पद्मोत्तर राजा दीक्षित हो गया और विष्णुकुमार को राज्य सौंपने लगा परन्तु राज्य न लेकर विष्णुकुमार दीक्षित हो गया । दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् विष्णुकुमार ने उपवास पर उपवास करने प्रारम्भ किये और उन्हें अनेक लब्धियाँ प्राप्त हुईं। विष्णुकुमार को आकाशगामिनी लब्धि प्राप्त थी। इसके कारण वे मेरु पर्वत की चूलिका पर रहते थे और वहाँ के शाश्वत मन्दिरों के दर्शन करके भाव-विभोर होते थे । पद्मोत्तर के दीक्षित होने के पश्चात् महापद्म हस्तिनापुर का राजा बना और चौदह रत्न प्राप्त होने पर वह चक्रवर्ती वन गया। चक्रवर्ती पद पर रहते हुए उसने धर्म के अनेक कार्य कराये फिर भी राज्य में पूर्व मंत्री नमुचि का वर्चस्व अधिक था । (५) महापद्म की धर्म के प्रति निष्ठा एवं हस्तिनापुर केन्द्र में होने से सुव्रताचार्य यहाँ पुनः शिष्यों सहित आये । इन्हें देखते ही नमुचि को मुनि से शत्रुता निकालने की इच्छा हुई। उसने महापद्म द्वारा पूर्व में दिये गये वरदान के बदले में अल्प काल के लिए चक्रवर्ती का पद प्रदान करने की माँग की। महापद्म ने नमुचि को राज्य का सम्पूर्ण संचालन सौंप दिया और स्वयं राज्य कार्य से निवृत्त होकर अन्तःपुर में रहा । राज्य का सम्पूर्ण अधिकार अपने हाथ में आने पर नमुचि ने हिंसात्मक महा यज्ञ प्रारम्भ किया। उसमें आशीर्वाद देने के लिए अन्य समस्त धर्म-गुरु आये परन्तु सुव्रताचार्य नहीं आये । इस अपराध के वहाने नमुचि ने उन्हें बुलावाया और कहा,

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