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सचित्र जैन कथासागर भाग
उस समय तम्बू में सोई हुई मलयागिरि जग रही थी। उसने यह समस्त वृतान्त अपने कानों से सुना । पुत्रों को देख कर उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा, उसकी कंचुकी फूल गई, स्तनों में से दूध की धारा वहने लगी। वह अंधेरी रात्रि में बाहर निकली और 'पुत्र सायर! पुत्र नीर! कह कर उसने उन दोनों का आलिंगन किया और वह सिसकियाँ भर-भर कर रोने लगी । इस आवाज से तम्बू में सोया हुआ व्यापारी जग गया और सायर तथा नीर को धमकी देता हुआ बोला, 'तुम चोरी करने के लिए आये हो अथवा किसी की स्त्री को उठाने के लिए आये हो?' परस्पर वाद-विवाद करते हुए भोर हो गया और यह शिकायत श्रीपुर के राजा चन्दन के पास पहुँची ।
व्यापारी ने अनुनय-विनय के साथ राजा को निवेदन किया, 'राजन्! ये दोनों सन्तरी मेरी इस पत्नी को उठा ले जाना चाहते हैं ।'
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राजा ने कहा, 'युवकों! सत्य सत्य बात कहो, तुम कौन हो?' युवकों ने अश्रु-पूर्ण नेत्रों से स्वयं पर बीती कहानी कहनी प्ररम्भ की। राजा ने बरबस धैर्य रखा परन्तु जब वे बालक जोर जोर से रोते हुए बोले कि, 'राजन् ! माता मलयागिरि तो वारह वर्षों के पश्चात् हमें मिली परन्तु पुत्रों को माता की अपेक्षा अधिक प्यार करने वाला हमारा तारणहार पिता चन्दन हमें कहाँ मिलेगा?' यह कह कर दोनों भाई और मलयागिरि सिसक-सिसक कर रो पड़े ।
राजा का धैर्य टूट गया। वह राज्य सिंहासन पर खड़ा हो गया और वोला, 'पुत्रो!
राजसिंहासन पर से उठ कर महाराजा चन्दन ने कहापुत्रो ! गभराओ मत, यह खज है तुम्हारा पिता चन्दन !