Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 320
________________ ३०७ जैनकथा' रत्नकोप नाग हो. जे में नथी कयुं ! में अघोर पाप कस्यां ले. हवे तमारां वचन सांजलीने संसारवास थकी महारं मन विरम्युं बे. महारामां योग्यता होय तो मुफ ने जैनदीदा देने अनुग्रह करो. केवली बोल्या, हे देवाणुप्पिय ! निर्विघ्न थान, प्रतिबंध न करो, पण अागलथी मन वचन कायाना योगनी शुद्धि करो, यात्मा निर्मल करो, पनी निःशल्य थइने दीक्षा व्यो. सहस्त्रमन बो व्यो, हे नगवन् ! महा मुष्टकर्मनो कर्त्ता ढुं बुं, इहांनो राजा महारी नपर' घणो देषी जे, ते माटे बीजे नगमे जश्ने दीक्षा लेलं. केवली बोल्या, रे न इ! तुं वीहीक न करीश, प्रनाते राजा वंदना करवा आवे, त्यारे तुं शहां आ वजे, सर्व रूडु थशे, एम सांजली प्रमाण करी ते चोर पोताने घेर गयो. प्रनाते राजा केवलीने वंदना करवा आव्या, नगरना लोक पण वंद ना करवा अाव्यां, सहस्रंमल्न पण यावीने केवली पासे बेठो, धर्मदेशना प्रारंजी, अनेक जीवोना अतीत अनागत वर्तमान कालना संदेह द्या. राजायें केवली जगवानने पूजयं, हे जगवन् ! ते चोर कोण हतो ? अने हमणां ते क्या ? केवली बोल्या, हे राजन् ! ते महारी पासे बेगो . पण ते उपर ईप करवो नही. जे कारण माटे एनुं मन हवे कुकर्म थकी निवयु जे; कर्मरूप पर्वतर्नु उन्मूलन करवाने वजाग्नि सरखं एवं जे चारित्र ते लेवाना एना परिणाम थया बे, ते माटे हे महाराज! ए मोदनुं अंग पाम्यो, तेने साहाय्य करवू घटे ने. राजा वोल्यो, आ जे आड़ा करी ते प्रमाण. पली राजाने तेडीने सहस्त्रमन पोताने घेर आव्यो. जे धन चोयुं हतुं ते सर्व उत्सवावीने धणी धणीने आप्युं, राजायें दीक्षानो महो त्सव कस्यो, सहस्त्रमनें केवली पासे चारित्र लीधुं, सहस्त्रमननी मातायें पण चारित्रं लीधुं, प्रथम दिवसेज केवली पासे अनिग्रह कस्यो के, महारे जावजीव सूधी मास मासखमणे पारणुं करवं. गुरुयें तेनी घणी प्रशंसा करी. सहस्त्रमने पण ग्रहण तथा बासेवन शिक्षा ग्रहण करीने पांच स मितें समिता त्रण गुप्तियें गुप्ता, मुनिराज थया. कोइ काले एक मास, को काले वे मास, कोई अवसरे त्रण मास, कोई समये चार मास, को वेला पांच मास अने को वेला उ मास, एम उक्कर तपस्या करतां अनेक वर्ष वही गयां, उर्गति निबंधनकर्म पितप्रायें थयु,कोश्कवेला गुन अध्यवसा य उलयां, तेथी पकश्रेणी मांझी, अपूर्वकरण कयुं. अनुक्रमें अवेदी

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