Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ ३०७ गौतमकुलक कथासहित. मदिरा पीधी,तेनी चेतना नाती, विसंस्थल केश थया,सदु धरतीये पज्या, चोरें अवसर जाणीने सर्व सार लीधुं, सर्वनां वस्त्र पण लीधां, सर्वने य थाजात एटले जेवा माताना नदरथी जन्म्या तेवा करीने नातो, पोताने घेर गयो. प्रनात थयो एटले सर्वनो मद उतस्यो, सदुये उन्या. ते मांहो माहे लाज पामता मठमां पेता. सहुयें वेश्याने पूब्युं, ए तहारो नाइ ह • तो के ? वेश्या बोली ए महारो नाइ न हतो, सहुयें सुरप्रियने वात क ही, सुरप्रियें राजा पासे जइ पोकार कस्यो के, हे राजन् ! चोरें महारो म तो लूंव्योज, पण महारो सर्व परिवार नग्न करीने गयो. माटे ए कोई क महा धूतारो तस्कर ले. राजा लगारेक हसीने बोल्या, रे मंत्री ! ए चो र धूतारें अमने एटलो तो गुण कस्खो के, अमारा वस्त्र ले गयो नही!!! ए नास्तिकाचार्य पण करुणा उपजे एवो विलाप करे , माटे एने का ढी मूको, ए फुःखीनां वचन सोनलवें सयुं, प्रधाने पण सुरप्रियने विस ज्यो, ते पोताने ठेकाणे गयो. ए रीतें बए दर्शनना झाननो अहंकार म दी नांरख्यो. एवं घर नथी, अथवा एवं राजकुल नथी, अथवा एवं देवकु ल नथी के, जेने ए धूत्तै कपट क्रिया करीने नथी लूटयु ! हवे राजा महा राज विपादवंत थयो, मंत्रीनी बुद्धि पण एमां न चाली, पांखमी सर्वने ते धर्ते विलखा कस्या, तेमज घणा जीवोनो संहार पण करे, यथा श्वा यें परस्त्रीयो पण नोगवे, ते निर्दय पापीनी जूगश्नो तो पारज नही. ए रीतें नो काल जाय बे. पण ते मायावी मूढ चरित्रवंत राजा प्रमुख को इना हाथमां न आवे. नरक प्रायोग्य तीव्र कर्मनां आचरण करतो कर्म बांधे. एवा अवसरनें विषे ग्रामानुग्रामे विहार करतां सुविशुभ नामें केवली जगवान त्यां पधास्या. राजा वंदना करवा गयो, नगरना लोक पण वंद ना करवा गया, ते चोर पण घणा लोक नेगा मल्या जाणीने चोरी कर वाने परिणामें गुटिका प्रयोगे वेष फेरवीने त्यां याव्यो. केवली लगवाने पण धर्मदेशना दीधी. ते यावी रीतें केः-प्राणीनी हिंसाथी, पारकी चोरी करवाथी, महा कडा विपाक आवे. इत्यादिक धर्मदेशना दीधी. ते सांन जीने को समकित, कोई देश विरति, कोइक नश्कनावी इत्यादिक अंगी कार करीने सर्व पर्षदा पोताने ठेकाणे गइ. सहस्त्रमन त्यां रह्यो, केवली ने वंदना करीने कहेवा लाग्यो के, हे नगवन् ! एवं कोई कुकर्म नथी के,

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405