Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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३४२ जैनकथा रत्नकोष नाग हो. मा बलदेवें गुणसमृ६ राज्य मी दीक्षा लीधी, वली महाबल राजर्षि उग्र तपस्या करीने माथा साटे सिदि वस्या. ___एम ते क्षत्रिय मुनियें, संयति मुनिने महा पुरुषोनां उदाहरणे करी झान पूर्वक क्रियानो महिमा कहीने हवे उपदेश दे ले के, हे संयतिमुनि! ते माटे ते नरत राज़ा प्रमुखनां नदाहरण सांजलीने उन्मत्त प्रलाप सरखा क्रियावादी आदिकना नामने कोण अंगिकार करे ? जेमाटे श्रीजिनमत अंगिकार करीने केशक संसार समुश् तस्या, माटे जे बुद्धिवंत होय ते प्रमाद न करे. एटले एम कर्दा के, जिनशासन अंगिकार करवू,ते अंगिकार करीने केशक संसारसमुह तस्या, के तरे बे, केश तरशे. ए कहेवाथी सिद्धिरूप फल बताव्यु. अनुक्रमें. दत्रिय मुनि तथा संयति मुनि वेदु सिदि वरशे, ॥ इति श्रीउत्तराध्ययन सूत्रे ॥ एटले प्रस्तुत पदने एम जोडीये, जे सर्व सुखने जीतनार एक धर्मसुख , तेथी जरत राजा प्रमुखें व खेमनां राज्य सुख बांकीने चारित्र अंगिकार कस्वां ॥ इति श्रीसकलसनानामिनीनालस्थ लतिलकायमानपंमितश्रीनत्तमविजयगणिशिष्यपंमितपद्मविजयगणिविरचिते बालावबोधेगौतमकुलकप्रकरणेषोडशगाथायांचत्वायुदाहरणानिसमाप्तानि॥
हवे सत्तरमी गाथा कहे . तेनो प्रर्वगाथा लाथें ए संबंध में के, प्रर्वगा थामां चार वाना थकी पण धर्म उत्कृष्ट एम कही देखाड्यो. ते माटे हवे सात वाना सेवतो धर्मनो प्रतीपदी अधर्म थाय जे. ते अधर्मना कार्यनूत जे धन प्रमुख ने तेनो नाश देखाडे जे. एसंबंधे आवी सत्तरमी गाथा कहे ने.
जूए पसत्तस्स धनस्स नासो, मंसं पसत्तस्स दया नासो ॥ मज पसत्तस्स जसस्स ना सो, वेसापसत्तस्स कुलस्स नासो ॥१७॥
अर्थः-"जूए पसत्तस्स धस्स नासो” जे प्राणी ( जूए के) जूवटुं रमवाने विषे ( पसत्तस्स के ) आसक्त होय, ते प्राणीनुं (धणस्स के० ) धननो (नासो के० ) नाश थाय, एटले जवटुं रमवामां आसक्त होय तेना धननो नाश थाय. ते उपर नलकूबरनो दृष्टांत कहेवो. तेनी कथा

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