Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 360
________________ ३४८ जैनकथा रत्नकोष नाग बहो. एवा वसरे इहां मित्रराजानी राणी श्रीदेवीने योनिशूल प्रकट थयुं. माटे मित्रराजा पोतानी राणी साधें मनुष्य संबंधी जोग जोगवी शके न ही. त्याऐं राजायें उचित कुमारने कामध्वजा गणिकाना घरथी काढी मू काव्यो, धने पोते ते कामध्वजागणिकाने अंगिकार करी. हवे ति कुमार ते वेश्या उपर गृद्ध थयो, तेमांज तल्लीन थयो थको मूर्हित थयो तेने बीजुं कांइ गमे नही. ए गणिकानोज अवसर ताकतो फरे. एकदा ते अवसर पामीने कामध्वजा गणिकाना घरमा गयो. का मध्वजा गणिका साथें जोग जोगववा लाग्यो. एवा अवसरे मित्रराजा स्नान करी, बलिकर्म करी, सर्वालंकारें विभूषित था, मनुष्यना वृंदें परि aat ज्यांगलिकानुं घर बे, त्यां याव्यो. एटले उचित कुमारने गणिका साधें जोग जोगवती दीठों. त्यारें कषायमां यावी, त्रिवली चढावीने च नित कुमारने पोताना पुरुष पासे पकडावी यष्टि मुष्टि ढींच ने कूं लीने प्रहारें करी मुवा सरखो कस्यो. प वजे बंधनें, बांधीने हे गौतम ! जेम तमे जोइ याव्या एवी अवस्थायें पमाड्यो ले. " एम गवाने कहे थके श्री गौतमस्वामी पूबे बे के, हे नगवन् ! ए sai काल करीने क्यां जशे ? प्रत्रु बोल्या, ए उचित कुमार, पचीश व नुं परम श्राखुं पालीने रत्नप्रनायें नारकी थशे. त्यांथी नीकलीने वानर टोलामां वानरो यशे, ते यौवनमां तिर्यचना जोगनेविषे गृद्ध थयो थको एक वानर साथै युद्ध करतां मरण पामीने एज नरतक्षेत्रे इंईपुर नगरमां गणिकाना कुलने विषे पुत्रपणें उपजशे. त्यां जन्मतांज तेना माता पिता वर्द्धित कर्म करीतेने नपुंसक कर्म शिखवशे. प्रियसेन कुमार नाम थापशे. ते नपुंसक, यौवनावस्था पामे थके, रूपलावण्य उत्कृष्ट पामशे. पक्षी ते प्रियसेन कुमार इंश्पुर नगरने विषे राजा प्रमुख घणा लोकनी विद्या, योग, मंत्र, चूर्ण, वशीकरण प्रमुखें मनुष्य संबंधी उदार जोग जोगवतो विचरशे. तेथी घणां पापकर्म उपार्जशे. एकवीशसें वर्षनुं परम श्राचखं पालीने रत्नप्रनायें नारकीपणें उपजशे. त्यांथी च्यवीने अनुक्रमें तिर्यच ना व प्रमुख प्रांतरे साते नरकमां उपजशे पढी जलचर, थलचर, खे चर, चरः परिसर्प, नुज्ञपरि सर्प तेनी जेटली जाति जेटली कुलकोडी वे ते मां एकेकमांक लाख बार उपजशे तेमज चोरिंडियमां, तेइंडियमां, प्र ·

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