Book Title: Jain Katha Ratna Kosh Part 06
Author(s): Bhimsinh Manek Shravak Mumbai
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 333
________________ ३२१ गौतमकुलक कथासहित. कुटुंबसहित सुखें त्यां रहे ले ॥ यतः ॥ लवणसमो नदि रसो, विन्नाणस मो अ बंधवो नजि ॥ धम्मस्स समो नदि निही, कोवसमो वेरि नजि ॥१॥ एक दिवस कौतुकयुक्त थको राजा पटराणी सहित जेम लक्ष्मी साथें कम निकले तेनी पेठे ते गरुड नपर कोकाश साथें वेसीने आकाश मार्गे नाना प्रकारनां वन, नदी, नगर, ग्राम, सीम, पहाड, पर्वत नजरें जोतां 'उल्लंघन करतां थोडी वारमा जरुषच्च नगरना माथा उपरथी जतां राणी राजाने पूजे जे, हे स्वामिन् ! था देवलोक सर कियुं नगर के ? अने गं गा सरखी निर्मल एवी या जलवाही कोण ? ते सांजलीने राजा सम्य क स्वरूप अजाणतो थको मौन करी रह्यो. त्यारे कोकाश बोल्यो, हे स्वा मिन् ! वीशमा तीर्थकर श्रीमुनिसुव्रतस्वामी पोतानां चरणकमलें करी पवित्र कम्युं. एवं था जरुअच्च नामे नगर में. अने ए नगरना लोक ने सुखदाइ, हंस, चक्रवाक, सारस प्रमुखना युग्मनीकीडायें सहित, या काशचारी विद्याधर किन्नर प्रमुखने पण कौतुक हास्य थाय, एवीए न मैदा नामें नदी ले. ते नगरने विपे सुरासुरसेवित केवलज्ञानी एवा श्रीमु निसुव्रतस्वामी पण दक्षिण दिशे रमु एवं जे प्रतिष्ठान पुर नगर त्यांथी एक रात्रिमा साठ योजन ननंघीने आव्या. त्यां यज्ञमा होमातो स वांगसलदाणवंत एवो पोताना पूर्वनवनो मित्र जे अश्व तेने पूर्वनव क थनादिकें करी जातिस्मरण ज्ञान नपजावीने प्रतिबोधता हवा. तेथी ते अश्व सर्व सचिंत्तनो त्याग करी, धर्मने विषे दृढ राग धरीने, सौधर्म देव लोकें सामानिक देवता थयो. ते देवता कतझपणा माटे त्यां स्वामीना समवसरणने स्थानके एक रत्नमयी अङ्गत महोटुं चैत्य बनावतो हवो. तेमां घणीज मनोहर जीवितस्वामी एटले श्रीमुनिसुव्रतनाथनी मूर्ति थाप तो हवो. वली पोताना पाबला नवनी अश्वमूर्ति थापतो हवो. ते दिव सथी इहां अश्वावबोध तीर्थ प्रसिद थयु , अने ते देवता पण आसन्नसि दिया माटे नित्य प्रनुपदपद्मनी सेवा करतो. जे यात्रायें आवे, तेना म नोवांछित परतो तीर्थनो महिमा वधारतो हवो. • वली कालांतरे एक वटनी समली हती तेनी उपर पाबला जवना वै रथी एक म्लेन्हें बाण मूक्यु. तेथी वींधाणी थकी पाबले नवें एक वार जि नवंदन अने साध्वीनी शुश्रूषा करी हती, ते पुण्य करी अंतसमये साधुयें

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