Book Title: Jain Hitechhu 1916 09 to 12
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 31
________________ ती युधशान्तिनु 'मिशन'. (૧) જગદલપુરના દિગમ્બર જૈન સંધ સમસ્તને પત્ર નીચે मुभम छ: आपका लेख जैनहितैषी, जैन प्रभात, दिगम्बर जैन इत्यादि में देख कर हम सब जैन दिगम्बर समाज जगदलपुर को परम हर्ष होता है कि जिस प्रकार के लेख आपने प्रकट किये है वह सर्व प्रकारसे हमे स्वीकार है. हम समस्त मंडली हस्ताक्षर करके आपकी सेवामें भेजते हैं; आशा है कि आप शीघ्र, तीर्थराजोंके कारण दिगम्बर श्वताम्बर समाजमें जो अग्निज्वाला भभक रही है इसे जिस प्रकारसे बने शान्त कीजिये, तथा जो निरंतर तीथोंके उपरसे झगडा होता रहता है यह भी सदैवके लिये बंद करदिया जावे यही हमारी सर्व दिगम्बर समाजकी अंतरंग इच्छा है. हमे मुकदमा अदालतमें न ले जाकरके लोकमान्य तिलक महाशय या श्रीयुत गांधीजी या अन्य कोई प्रजाकीय अग्रेलर तथा जैन समाजके दोनों पक्षके धर्मात्मा जो निर्णय करेंगे वही हमे सर्व प्रकार स्वीकार है. प्रार्थी. मुन्नालाल जैन. ( और अन्य १२ गृहस्थोंके हस्ताक्षर.) (૨૦) દિગમ્બર વેતામ્બર ગૃહસ્થની આ મિશન તરફની લાગણી સૂચવતા થોડાક પત્ર નમુના તરીકે રજુ કર્યા પછી હવે બે પત્ર સ્થાનકવાશી જૈન સજજનો તરફના પણ રજુ કરવા ઠીક થઈ પડશે. (अ) २१ २२. नवस ७. सनी भी. से. मेस. मेस. मी. महासभा-भुपथ्था समेछ: “I am simply charmed with your pamphlet of क्षमापना, wherein you so strongly advocate an amicable: settlement of the disputes between the different sections of the Jain community. I endorse your views and suggestions and am willing to co-operate with you heart and soul in your noble undertaking,"

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