Book Title: Jain Hitechhu 1916 09 to 12
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 88
________________ ७४ नाहित. देखकर. दुःख नहीं होता, वह क्या धर्मोनति कर सकता है ? स्मरण रहे अदालत भी जब मुकदमा पेचीदा देखती है तो पंचायत द्वारा तै कर लेने के लिये जोर देती है । प्राचीन काल में पंचायतों द्वारा ही सारें मुकदमें तै हुआ करते थे। यह कहना कि पंचायत में क्या वकील को देना नहीं पडता, इस बात को सिद्ध नहीं करता कि पंचायत और अदालत के खर्च बराबर है। पंचायत के रूबरू यदि आप में योग्यता हो तो आप. स्वयं अपने पक्ष का आसानी से समर्थन कर सकते हैं। महीनों अदालत में झांकने और इतना बडा दफ्तर रखने की बजाए योडे से समय में तमाम बातों का निबटेरा हो सकता है । यह कहना कि पंचायत के फैसले से संतोष नहीं होता सर्वथा मिथ्या है । इस के विपरीत ऐसा प्रायः देखने में आता है कि भदालत के फैसले से, सब जज के फैसले से, हाईकोर्ट के फैसले से, पीवी कौंसिल के फैसले से, हारने वाले पक्ष को संतोष नही होता, परन्तु ऐसा कभी मुन्ने में नहीं आया कि पंचायत से किसी पक्षको संतोष न होता हो । पंचायत का फैसला ही ऐसा होता है कि जिसमें दोनों पक्ष वालों को संतोप होनाए। पंच लोगों का भाव ही यह होता है कि ऐसा फैसला किया जाय कि जिस से किसी पक्षको असंतोष प्रगट करने का अवसर न रहे । खास कर सम्मेद शिखर जी जैसे मुकदमें में पंचायत द्वारा यह कदापि संभावना नहीं की जा सकती कि वह दिगम्बरियों का तीर्थ राजसे बिलकुल स्वत्व मिटा दे, अथवा श्वेताम्बरियों का हटादे । परन्तु अदालत से यह सम्भव है कि वह एक पक्ष का स्वत्व बिलकुल मिटा दे । सर्वज्ञ देव न करें, यदि पीवी कोंसल ने किसी एक पक्ष के स्वत्व को बिल- - कुल मिटा दिया तो फिर क्या होगा? ऐसी अवस्था में पंचा

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