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તીર્થયુદ્ધશાન્તિનું ‘મિશન.”
तीर्थाका नाममाजकी स्थिति में जहाँ तक पता वाढीलालजीके
(૪) જૈન પ્રભાત નામના દિગમ્બર પત્રના આશ્વિનના અંકમાં નીચેની એડીટરીઅલ જોવામાં આવે છે – ___“जैन प्रभात'के गतांकमें हमने तीर्थोके झगडे मिटानेके संबंध एक लेख श्रीयुत वाडीलालजी मोतीलालजी शाहका प्रकाशित किया था। इस लेखको लेखकने गुजराती और हिन्दी भाषामें ट्रैक्टरूपसे भी बाँटा था । ध्यान रहे कि वाडीलालजी न तो दिगम्बर हैं और न मूर्तिपूजक श्वेताम्बर। वे तीर्थोको नहीं मानते । उन्होंने एक साधारण जैन होनेके नातेसे और जैन समाजकी स्थितिका अध: पतन होते देखकर इस ले- . खको प्रकाशित किया था। हमें जहाँ तक पता लगा है दोनो संप्रदायके कुछ कुछ अगुएं और सर्वसाधारण वाडीलालजीके बताये हुए उपायसे सहमत रहे हैं । पर समाजके अभाग्यसे उसमें ऐसे भी मनुष्योंकी कमी नहीं है जो दोनोमें-दिगम्बर श्वेताम्बरोंमें-ऐक्य होने देना नहीं चाहते । समाजके ऐसे पुरुष वाडीलालजीके प्रयत्नके विरुद्धमें परिश्रम कर रहे हैं। उनकी यह हार्दिक भावना है कि दिगम्बर श्वेताम्बरोंका युद्ध शान्त न होने पावे । * * * * * * *
"श्वेताम्बर समाजका भी यही हाल है । उसके अनुयायी भी अपनेको सच्चे कहकर प्रसिद्ध करते हैं, पर उनमें भी वे ही दुर्गुण हैं जो हम दिगम्बरोंमे बता आये हैं। अतएव दोनोका अपनेको सच्चा बताना भूलभरा है। सच्चा सत्यका अनुयायी तो एक भी नहीं है । पर वे जिस सत्यके अनुयायी होना चाइते हैं उसीके लिये श्रीयुत वाडीलालजी आदि महाशयोंने अपने विचार निवेदन किये हैं । वे साधारण जैन समाजको विश्वास दिलाते हैं कि उस निवेदन पत्रमें जो कुछ लिखा गया है समाज के लिये हितकर है और शुद्ध हृदयसे लिखा गया है। समाजके प्र