Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 13
________________ फलने-फूलने वाला पेड़ और जिसका जीव निकल चुका हो वह अजीव हो जाता है, जैसे-सूखा पेड़। इन एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर जीव भी कहते हैं । इनके शरीर में खून, हड्डी, चर्बी श्रादि नहीं होते सिर्फ रस होता है। ___ दो इन्द्रिय जीव वे हैं जिनके स्पर्शन और जीभ ये दो इंद्रियाँ हैं। जो अपनी दोनों इंद्रियों से छूकर ठंडक, गर्मी आदि जान सकते हैं तथा चखकर खट्टा, मीठा आदि स्वाद भी समझ सकते हैं। जैसे-केंचुश्रा, गेंडुश्रा, शङ्ख, कौड़ी, सीप आदि । कौड़ी, शङ्ख, सीप जब पानी में होते हैं पानी के ऊपर नीचे आते जाते हैं, घूमते फिरते हैं तब उनमें जीव होता है। जब वह मर जाता है तब सूखी हड्डी रह जाती है। जिन जीवों के चमड़ा, जीम और नाक ये तीन इन्द्रियाँ ही होती हैं यानी जो छूने. स्वाद चखने और सूंघकर सुगन्ध दुर्गन्ध जानने की ताकत रखते हैं वे तीन इन्द्रिय जीव होते हैं। जैसेबीकू, खटमल, जू आदि । __ जिनके इन तीनों इन्द्रियों के सिवाय आँख चौथी इन्द्रिय भी पाई जाती है यानी जो तीन इन्द्रिय जीव से देखने की ताकत और अधिक रखते है वे चार इन्द्रिय जीव होते हैं। जैसे-मक्खी , मच्छर, टिड्डी, पतङ्गा श्रादि छोटे उड़ने वाले जन्तु । · पांच इन्द्रिय जीव वे होते हैं जिनके समस्त इन्द्रियों होती है जो छूकर, चखकर, सूखकर, देखकर और सुनकर जानते हैं। चार इन्द्रिय जीवों से इनमें 'कान' नामक इन्द्रिय और ज्यादा

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