Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 43
________________ जिस समय उत्सर्पण काल पाता है उस समय दिनों दिन उन्नति होती जाती है. मनुष्यों की आयु (उम्र), शक्ति, बुद्धि, विद्या, ऊँचाई, (ब्द) सुख, शान्ति, पौरुष, वैभव आदि दिन पर दिन बढ़ते चले जाते हैं। __ तथा-जब अवसर्पण काल का युग प्रारम्भ होता है उस समय दिन पर दिन भवनति (तनजली) होती जाती है। मनुष्य की (जिस्मानी ताकत और मस्तिष्क शक्ति (दिमागी ताकृत) घटती चली जाती है, उम्र थोड़ी होती जाती है, शरीर का कद छोटा होता जाता है, रोग, दुख, व्याकुलता, चिन्ता बढ़ते जाते हैं, सदाचार, सत्य व्यवहार, परोपकार, अहिंसा भाव, धर्माचार, न्याय कम होते चले जाते हैं। अधर्म, अन्याय, अत्याचार बढ़ते चले जाते हैं। हमारा यह वर्तमान युग ( मौजूदा जमाना ) अवसर्पण काल का है । जिसको शुरू हुए लाखों करोड़ों वर्ष बोत चुके हैं । अतएव शुरू से ही अवनति होती चली आई और दिनों दिन पतन (गिरावट ) होता चला जा रहा है। पहले मनुष्यों की बुद्धि बहुत तेज होती थी जिससे वे प्रात्मा, परमात्मा, परलोक, कर्म, मोक्ष आदि प्रत्यक्ष-परोक्ष पदार्थों के ज्योतिष, वैद्यक, गायन आदि कलाओं के अनेक अपूर्ण ग्रन्थों की रचना कर गये हैं। अनेक ऋषियों को दिव्यज्ञान और किन्हीं को पूर्ण ज्ञान भी होता था जिससे कि वे एक जगह बैठे बैठे बहुत दूर की परोक्ष बातों को, पिछली और आगे होने वाली बातों को जान लेते थे, मन्त्रबल और विद्यावल से अनेक अद्भुत काम कर सकते थे।

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