Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 42
________________ ( ३६ ) से) मालूम होता है कि जैनधर्म की उत्पत्ति का कोई निश्चित काल नहीं है प्राचीन से प्राचीन ग्रंथों में जैनधर्म का हवाला मिलता है ।" मेजर जनरल जे० सी० आर० फरलॉग एफ० आर० एस० ई० आदि सन् १८६७ में अपनी पुस्तक में १३ में १५ वें पृष्ठ पर लिखते हैं : It is impossible to find a begining for Jainism. ( Intro P. 13 ) Jainism thus appears an earliest faith of India. ( Intro P. 15. ) अर्थात् "जैनधर्म के प्रारम्भ का पाना असम्भव है। इस तरह भारत का सबसे पुराना धर्म यह जैनधर्म मालूम होता है।" इसी प्रकार जैनधर्म के विषय में जिन जिन देशी-विदेशी विद्वानों ने ऐतिहासिक रूप से तथा तात्विक रूप से गहरी छानबीन की है उन सभी ने अपना मन्तव्य इसी रूप में लिख कर प्रकट किया है । जिसको कि यहाँ पर लिखना अनावश्यक समझते हैं । श्रस्तु | काल परिवर्तन | संसार में परिवर्तन ( तबदीली ) खास करके दो प्रकार से होती है । उत्सर्पण ( उन्नति-तरक्की रूप) दूसरा श्रवसर्पण (तनज्जली रूप) कभी उन्नति करने वाला परिवर्तन होता है और कभी अवनति कराने वाला ।

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