Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 41
________________ ( ३५ ) संसार में वापिस आकर जन्म लेना असम्भव ( नामुमकिन ) है। जैसे धान के ( छिलके वाला चावल ) ऊपर से जब छिलका दूर हो जावे तो वह फिर कदापि नहीं उग सकता । तथा मुक्त जीव के शरीर नहीं होता, श्रमूर्तिक आत्मा होती है जो कि मनुष्याकार होता हुआ भी शरीर न होने से परम सूक्ष्म होता है। इस कारण एक ही स्थान पर बहुत से मुक्त जीव रहते हुए भी उनको कोई रुकावट या बाधा नहीं होती । जैसे आकाश, हवा आदि पदार्थ एक ही स्थान पर एक साथ रहते हुए भी एक दूसरे को रुकावट नहीं डालते । अजैन विद्वानों की सम्मति । जैन धर्म के विषय में स्वर्गीय श्रीमान् लोकमान्य बाल गङ्गाधर जी तिलक' मराठी केसरी' में १३ दिसम्बर सन् १९०४ को लिखते हैं। " ग्रन्थों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है कि जैन धर्म अनादि है । यह विषय निर्विवाद तथा मतभेद रहित है । सुतरां इस विषय में इतिहास के दृढ़ सुबूत हैं ।” साहित्य रत्न श्रीमान् ला० कन्नोमल जी एम० ए० सेशन जन धौलपुर लिखते हैं कि : " सभी लोग जानते हैं कि जैनधर्म के आदि तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव स्वामी हैं जिनका काल इतिहास परिधि से ( तवारीखी हद से ) कहीं परे है इनका वर्णन सनातनधर्मी हिन्दुओं के श्रीमद्भागवत पुराण में भी है। ऐतिहासिक गवेषणा से ( खोजने -:

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