Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 40
________________ ( ३४ ) जिसका 'अन्त' (खीर) न हो। इस कारण संसारवर्ती अनन्त जीव राशि में जीव सदा मुक्त होते रहें और मुक्ती से वापिस भी न लौटें तो भी वह जीवराशि अनन्त ही रहेगी । इसको यों समझ लीजिये कि आकाश अनन्त है । यदि कोई मनुष्यप्रति सैकड एक हजार मील की शीघ्र चाल से भी एक दिशा में सीधा चलता रहे किन्तु वह हजारों लाखों करोड़ों वर्षो चलते रहने पर भी किसी भी दिन उस आकाश का अन्त नहीं पा सकता । अथवा ईश्वर अनन्त काल तक रहेगा इसका अर्थ यही है कि समय बीतता चला जायगा । किन्तु ईश्वर का समय कदापि समाप्त नहीं होगा। किसी भी मनुष्य के पिता, बाबा आदि पूर्वजों की ( पिता परम्परा की ) गिनती करने बैठे उसमें भी ये ही बात होगी । पिता उसका पिता, उसका भी पिता, उसका भी पिता आदि बराबर गिनते चले जाइये, गिनते हुये हजारों लाखों वर्ष बीत जानें किन्तु वह पिता परम्परा समाप्त नहीं होगी। क्योंकि वे पूर्वज पुरुष अनन्त हैं। इस कारण इसी प्रकार अनन्त संसारी जीवों में से यदि कुछ जीव मुक्ति प्राप्त करते रहें और लौटें नहीं तब भी संसार कदापि जीव शून्य नहीं हो सकता । श्रतएव संसार खाली हो जाने के ख्याल से मुक्त जीवों का संसार में वापिस आना मानना ठीक नहीं । इसके सिवाय, संसार में जीवों का जन्म, मरण, अनेक योनियों में आना जाना कर्मों के कारण होता है वे कर्म तथा राग द्वेषादि भाव मुक्त जीव के होते नही । इस कारण उनका -

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