Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 47
________________ ( ४१ ) श्री चम्पावती' जैन पुस्तकमाला की सर्वोपयोगी पुस्तकें १-जैनधर्म परिचय पं० अजितकुमारजी शास्त्री इसके लेखक हैं। पृष्ठ संख्या करीब पचास के है। लेखक ने जैनधर्म के चारों अनुयोगों को इसमें संक्षेप में बतलाया है। जैनधर्म के साधारण ज्ञान के लिये यह बहुत उपयोगी है। मूल्य केवल -)। २-जैनमत नास्तिक मत नहीं है यह मि० हर्ट वारन के एक अंग्रेजी लेख का अनुवाद है। इसमें जैनधर्म को नास्तिक बतलाने वालों के प्रत्येक आक्षेप का उत्तर लेखक ने बड़ी योग्यता से दिया है । मूल्य केवल )। ३-क्या भार्यसमाजी वेदानुयायी हैं ? इसके लेखक पं० राजेन्द्रकुमार जी न्यायतीर्थ हैं। इसमें लेखक ने आर्यसमाजियों के अनादि पदार्थों के सिद्धान्त, मुक्ति सिद्धान्त, ईश्वर का निमित्तकारण और सृष्टिक्रम व ईश्वरस्वरूप को बड़ी स्पष्ट रीति से वेद-विरुद्ध प्रमाणित किया है। पृष्ट संख्या ४४ । कागज़ बढ़िया । मूल्य केवल -) ४-वेद मीमांसा यह पं० पुत्तूलाल जी कृत प्रसिद्ध पुस्तक है। पुस्तकमाला ने इसको प्रचारार्थ पुनः प्रकाशित किया है। मूल्य 12) से कम करके केवल 4) रक्खा है।

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