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इसके सिवाय एक यह भी बात है कि परमेश्वर कोई खिलाड़ी नहीं जिसको बनाने बिगाड़ने का खेल सूजता रहे । तथा संसार
अन्यायी पापी दुष्ट जीवों के द्वारा आगे ( भविष्य में ) फैलने वाली खराबियों को जानता हुआ भी परमेश्वर उनको बनाकर क्यों भूल कर गया ? और जब कि वह वास्तव में ( असलियत में) सवं शक्तिमान है तो संसार की प्रचलित खरात्रियों को क्यों नहीं दूर कर देता जब कि साधारण अधिकारी ( हुकूमतदार ) बहुत कुछ शान्ति ( अमन-चैन ) कर देता है ? इत्यादि ।
ये बातें हैं जो कि सिद्ध ( साबित ) करती हैं कि संसार और उसके जीवों को न तो परमेश्वर ने बनाया है और न बना ही सकता है ।
इसी कारण कोई मत ईश्वर से संसार की और जीवों की उत्पत्ति किसी ढंग से मानता है और कोई किसी ढंग से । कोई पहले आकाश बनना बताता है, कोई बाग का बनना, तो कोई समुद्र की पहिले उत्पत्ति बतलाता है । कोई पहले पहल केवल स्त्री पुरुष का एक ही जोड़े का उत्पन्न होना कहता है, कोई अनेकों का ।
बुद्धिमान स्वयम् विचार सकते हैं कि यदि पहले कुछ भी नहीं था तो आकाश, पहाड़, समुद्र, पृथ्वी, जंगल आदि ईश्वर ने कहाँ से ला दिये ? और यदि कोई जीव नहीं था तो बिना माता पिता के खून, हड्डी, मांस वाले ये असंख्य पुतले ( शरीर धारी जीव ) कहाँ से खड़े कर दिये ?