Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 37
________________ ( ३१ ) में अपनी ताकत से बनाकर पैदा किया, उसके पहले कुछ नहीं था । तथा किसी समय वह सारे संसार को मिटा भी देगा। ऐसे संसार और जीवों के बनाने तथा बिगाड़ने वाले परमेश्वर को के त्रिकालज्ञाता, (सर्वज्ञ) अशरीर, (निराकार ) सर्व शक्तिमान्, ( हर एक तरह की सब ताकतों का खजाना ) सर्व व्यापक ( सब जगह रहने वाला) और न्याय करने वाला इत्यादि स्वरूप मानते हैं । किन्तु उनका यह मानना ठीक नहीं ठहरता, क्योंकि वह प्राकृतिक ( कुदरती ) नियमों से विरुद्ध है इसका कारण यह है कि गर्भज जीव अपने नर मादा से ही पैदा होते हैं । परमेश्वर कोई नर मादा नहीं जो शरीर धारी जीवों को पैदा करता फिरे । इसी तरह पृथ्वी, आकाश, हवा, पानी आदि पदार्थ भी शरीर धारी जीवों के लिये हमेशा से मानने पड़ेंगे । जीव हों और ये संसार की चीजें न हों यह तो कभी हो ही नहीं सकता । इसके सिवाय यह भी प्रश्न होता है कि अगर पहले कुछ नहीं था तो फिर इसमें क्या प्रमाण ( सुबूत ) कि उस समय अकेला परमेश्वर ही था ? तथा परमेश्वर ये चीजें लाया भी कहाँ से ? जमीन, पहाड़, सूर्य, चन्द्र, आकाश, जंगल, समुद्र, जीव ईश्वर की किस थैली में रक्खे हुये थे ? यह तो हो नहीं सकता कि वह स्वयम् तो निराकर (वे शकल ) और उसने साकार ( शकलदार जमीन आदि) पदार्थ यों हो बना दिये । क्योंकि नियम है साकार चीज दूसरी साकार चीज से ही बन सकती है और आकाश, जमीन आदि न होने से स्वयम ( खुद ) परमेश्वर भी कहाँ रह सकेगा ।

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