Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 36
________________ मौजूदगी नहीं थी।" क्योंकि मनुष्यका शरीर-मनुष्य शरीरधारी माता पिता के रज वीर्य से ही बनता है। ताज के मनुष्यों को देख. कर यह अपने आप मानना पड़ता है कि पिता, दादा, परदादा आदि की लाइन कहीं भी समाप्त नहीं होगी। इसी तरह घोड़े,. बैल, बकरी आदि जाति के पशुओं के विषय में भी नियम है। वे भी अपने नर मादा के रज वीर्य से ही पैदा होते हैं। इस कारण उनके पूर्वजों की गिनती भी कहीं समाप्त नहीं होगी। __ यह लायन बीज वृक्ष (पेड़) के समान है। जैसे आज एक आम का पेड़ मौजूद है वह किसो ( अपने ) बीज से पैदा हुआ था वह बीज (आम की गुठली) किसी आम के पेड़ से पैदा हुआ था वह पेड़ भी किसी और बीज से उगा था और उस बीज की उत्पत्ति भी किसी आम के पेड़ से हुई थो । इत्यादि यह बीज पेड़ की लाइन कहीं भी खतम नहीं होगी। जिससे यों माना जा सके कि अमूक समय से ही आम के पेड़ पैदा हुए उसके पहले कोई भी आम का पेड़ नहीं था। क्योंकि जहाँ पर हम यह कहें कि अमुक समय से ही मनुष्य की या आम के पेड़ की पैदायश शुरू हुई तो वहां पर प्रश्न उठेगा कि वह पहला मनुष्य या वह पहला श्राम का पेड़ कहाँ से पैदा हुआ । उत्तर में कहना पड़ेगा कि उस मनुष्य से तथा उस आम के पेड़ से पहले भी उसके पैदा करने वाले स्त्री पुरुष तथा बीज था । इस कारण संसारी जीवों की अनादि परम्परा सहैतुक ( दलीलन ) माननी पड़ती है। कुछ धर्मानुयायियों का यह कहना है कि संसार को तथा उसमें रहने वाले जीवों को परमेश्वर ने किसी खास एक समय

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