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( २८ ) यानी हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पाँचों पापों का पूर्ण त्याग कर देते हैं। जंगल या नगर के बाहर बने हुए गुफा, मठ
आदि में रहते हैं। बिलकुल नग्न होते हैं, विधि से दिन में एक बार खड़े होकर शुद्ध भोजन करते हैं। जमीन से कमंडलु आदि से जीवों को हटाने के लिये मोर पंखों की एक पीली, पानी के लिये एक लकड़ी का कमण्डलु तथा शास्त्र अपने पास रखते हैं। संसारसे पूर्ण निःस्पृह, अटल ब्रह्मचारी, शान्त, निर्भय और वीतराग होते हैं । जमीन पर रात को थोड़ा सोते हैं। रात को न बोलते हैं और न कहीं पाते जाते हैं। कष्ट देने वाले पर क्रोध नहीं करते और न सेवा करने वाले पर प्रेम करते हैं। यह साधारण संक्षेप रूप से जैन साधु का आचरण है।
___ संसार का विवरण। यह विस्तृत संसार जिसमें कि पृथिवी, पर्वत, आकाश, नदी, समुद्र, झील, जङ्गल, जल, अग्नि, हवा आदि सब पदार्थ पाये जाते हैं या यों कहिये कि जो सब तरह के जड़ चेतन पदार्थों का घर है। वह संसार अनादिकाल से (यानी जिस समय की कभी शुरूआत नहीं) बराबर चला आ रहा है या मौजूद है
और वह अनन्त काल तक (यानी उसका अखीर समय नहीं है) मौजूद रहेगा। कहने का मतलब यह है कि यह संसार न तो किसी एक विशेष ( खास) समय में बन कर तैयार हुआ था और न कभी इसका अन्त ( नाश नाबूद-बर्वादी) ही होगी ।जैसा सदा से चला आया है वैसा ही हमेशा बना रहेगा।
খুদা, নয়া স্কুলে