Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 28
________________ ( २२ ) १ - दर्शन प्रतिमा । शराब, मांस और मधु (शहद) खाने का त्याग करना तथा अंजीर, गूलर, पाकर, बड़ और पोपल ( पेड़ का फल ) खाना छोड़ना एवं " जुवा खेलना, शिकार खेलना, नशीली चीजों का सेवन, मांस खाना, चोरी करना, वेश्या सेवन करना और पर-स्त्री सेवन" (दूसरे पुरुष की औरत से व्यभिचार) इन सात कुव्यशनों का त्याग करना, सम्यग्दर्शन को निर्दोष धारण करना पहली दर्शन प्रतिमा है । मधु, अंजीर आदि में त्रस जीव होते हैं । २ व्रत प्रतिमा । बारह व्रतों का नियम से पालना व्रत प्रतिमा है । बारह व्रत संक्षेप से इस प्रकार हैं। १ - अहिंसा अणुव्रत त्रस ( दो इन्द्रिय आदि ) जीवों को जान बूझकर नहीं मारना हिंसा अणुव्रत है । व्यापार में, रसोई, मकान आदि बनाने में, तथा शत्रु से लड़ने भिड़ने में जो हिंसा होती है उस हिंसा का त्याग नहीं होता है । २- सत्य अणुव्रत धर्म घातक, दूसरे का प्राण घातक, पंचायत द्वारा दण्डनीय तथा राज्य से दण्ड ( सजा ) पाने योग्य झूठ बोलने का त्याग सत्य अणुव्रत है । ३ - अचौर्य अणुव्रत पानी, मिट्टी आदि चीजों को छोड़कर जिस पर कि खास किसी एक पुरुष का अधिकार नहीं है सब कोई ले सकता है और किसी भी वस्तु को उसके स्वामी (मालिक) के पूछे बिना नहीं लेना सो अचौर्य अणुव्रत है ।

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