Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 30
________________ ( २४ ) विचार करना, सामायिक पाठ पढ़ना तथा मन्त्रों की माला फेरना सामायिक है। १०-प्रोषधोपवास व्रत-अष्टमी, चतुर्दशी को कम से कम एकाशन ( एक बार भोजन ) करना तथा अधिक से अधिक १६ पहर का भोजन छोड़ मन्दिर में बैठकर धर्म ध्यान में समय लगाना प्रोषधोपवास व्रत है। सोलह पहर का व्रत करने वाला अष्टमी, चतुर्दशी तिथि से एक दिन पहले और एक दिन पीछे, एकाशन करता है तथा उस दिन उपवास (बिलकुल कुछ नहीं खाना) करता है। ११-भोगोपभोग परिमाण-भोग्य ( जो पदार्थ एक बार भोग में आकर फिर भोगने में न आवे जैसे भोजन, तेल, फूल माला आदि) और उप-भोग्य (जो पदार्थ बार बार काम में लाये जा सकें जैसे कपड़े, गहने, मकान, सवारी आदि ) पदार्थों का अपने योग्य निवम कर लेना शेष पदार्थों को छोड़ देना भोगोपभोग परिमाण व्रत है। १२-अतिथिसंविभाग व्रत-साधुओं के लिये तथा ब्रह्मचारी, तुल्लक, ऐलकादि सदाचारी श्रावक के लिये एवं दीन, असमर्थ अपाहिज के लिये "भोजन, ज्ञान प्राप्ति के साधन (पुस्तक आदि ) औषधि (दवा) और अभय (डर मिटाने के साधन )" ये चार प्रकार का दान देना सो अतिथिसंविभाग व्रत है। इन बारह व्रतों का पालने वाला दूसरी प्रतिमा बाला व्रती श्रावक होता है।

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