Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 29
________________ ( २३ ) ४-ब्रह्मचर्य अणुव्रत-अपनी विवाही हुई स्त्री के सिवाय शेष सब स्त्रियों को माता, बहिन, पुत्री, समान समझ कर किसी के साथ भी दुराचार नहीं करना ब्रह्मचर्य अणुव्रत है। ५-परिग्रह परिणाम अणुव्रत-मकान, धन, पशु, कपड़े, गहने, जमीन, सवारी आदि संसारी पदार्थों का अपने काम अनुसार नियम कर लेना कि "मैं इतना रक्खूगा अधिक नहीं" परिग्रह परिमाण अणुव्रत है। ६-दिग्वत-पूर्व, पश्चिम, ऊपर (पहाड़ आदि) नीचे (कुंआ आदि) इत्यादि दिशाओं में जन्म भर तक आने जाने की सीमा (हद ) बाँध लेना और उससे बाहर न जाना सो दिग्व्रत है। ७-कुछ समय के लिये जितनी थोड़ी जगह में अपना काम चल सकता हो उतनी जगह यानी घर, मुहल्ला, शहर आदि के आने जाने का नियम कर लेना देशव्रत है। ___-अनर्थ दण्ड त्याग व्रत-बिना मतलब जिन कार्यों में पाप कर्म बन्धे, पाप लगे उन कार्यों का छोड़ना अनर्थ दण्ड त्याग व्रत है। जैसे किसी को विष, हथियार आदि देना, बिना मतलब पानी बखेरना, पेड़ तोड़ना, जमीन खोदना, खराब कथाओं का सुनना सुनाना आदि। -सामयिक-सुबह, शाम और दोपहर को कुछ समय के लिये प्रतिज्ञा पूर्वक हिंसा, झूठ आदि पापों का पूर्ण त्याग करके संसार की दशा, धर्म का अपनी आत्मा आदि का

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