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सम्यग्ज्ञान। सम्यग्दर्शन हो जाने पर ज्ञान का नाम सम्यग्ज्ञान होता है। अर्थात् जब तक सच्चे देव, गुरु, शास्त्र का तथा अर्हन्त भगवान के बतलाये हुये सिद्धान्त का सच्चा श्रद्धान (विश्वास-यकीन) न होवे तब तक ज्ञान मिथ्याज्ञान कहलाता है। समा श्रद्धान हो जाने पर उसको सम्यग्ज्ञान कहते हैं। अर्थात् देव, शास्त्र, गुरु का और जैन सिद्धान्त (जैन फिलासफी) का विश्वास रखकर गृहस्थ को अपना ज्ञान शास्त्रों से बढ़ाते रहना चाहिये।
सम्यक्चारित्र। पाप मार्ग को छोड़कर सदाचार ग्रहण करना सम्यक्चारित्र है।
इस सम्यक्चारित्र को जघन्य श्रेणी का (सबसे नीचे दर्जे का ) श्रावक जिसको कि पाक्षिक भी कहते हैं, बहुत छोटे रूप में आवरण करता है । जिनेन्द्र भगवान का प्रति दिन दर्शन करना, शराब, मांस नहीं खाना, पानी छानकर पीना, रात का कम से कम अन्न की बनी हुई चीज नहीं खाना इतना आचरण वह सब से नीचे दर्जे का जैनी पालता है। ____ इससे आगे गृहस्थ जैनके ११ दर्जे हैं जिन्हें प्रतिमा कहते हैं। उनका आचरण करने वाला 'नैष्टिक' श्रावक कहलाता है। इन प्रतिमाओं का आचरण आगे आगे बढ़ता गया है और अगली प्रतिमा के चारित्र को पालते हुए उससे पहिली प्रतिमाओं का अवश्य होना चाहिये । प्रतिमाओं का संक्षेप विवरण यों है।