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( १६ ) जो समस्त जीवों को सच्चा हितकारी उपदेश दे बह हितोपदेशी है।
ये तीनों बातें जिसमें हो वह 'अर्हन्त भगवान' जैनियों का पूज्य परमात्मा है। उस अहंन्त भगवान की ही वीतराग मूर्ति (कपड़े, गहने आदि सजावट रहित ) बनाकर मन्दिर में जैन लोग पूजते हैं। __ यहां इतना ध्यान रखना चाहिये कि मनुष्यों की आँखें बाहर जैसी तसवीर, मूर्ति, आकार देखती हैं वैसा ही प्रभाव उनके हृदय पर पड़ता है । जैसे किसी शूरवीर की तसवीर देखने से हृदय में शूरवीरता पार सुन्दर ब्यभिचारिणी स्त्री का चित्र देखने से खराब भाव मन में पैदा होते हैं । इसी प्रकार अर्हन्त भगवान की शान्त, वीतराग मूर्ति देखने से शान्ति, वीतरागता का असर हृदय पर पड़ता है। इसी कारण जैनी अर्हन्त मूर्ति का दर्शन पूजन करते हैं। यानी वे मूर्ति के सहारे से मूर्ति वाले अर्थात् अर्हन्त भगवान का दर्शन, पूजन उन सरीखी शान्ति, वीतरागता प्राप्त करने के लिये करते हैं।
शास्त्र। अर्हन्त भगवान का उपदेश तथा सिद्धान्त (फिलोसफी) जिन ग्रन्थों में लिखा हुआ है वे जैनियों के मानने योग्य शास्त्र होते हैं । अर्हन्त भगवान का उपदेश और सिद्धान्त गुरू शिष्य परम्परा से चला आता है । सच्चे शास्त्र को पागम, जिनवाणी भी कहते हैं।