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सिद्ध होने से पहले ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय इन चार कमों को आत्मा से बिलकुल दूर करके जीवन मुक्त दशा में मौजूद परमात्मा को अर्हन्त देव कहते हैं। संसारी जीवों को धर्म का उपदेश अर्हन्त भगवान से प्राप्त होता है । इस कारण सिद्ध परमात्मा की अपेक्षा अर्हन्त भगवान की गृहस्थ लोग अधिक उपासना करते हैं।
सच्चे देव के विशेष चिन्ह ।
सच्चा देव वीतराग, सर्वज्ञ और हितोपदेशी होना चाहिये जिनमें ये बात पाई जावे वह सच्चा देव है। जिसमें ये बात न हों वह सच्चा देव नहीं है। ___ राग, द्वेष, मोह, चिन्ता, अभिमान, जन्म, मरण, शोक, भय,
आश्चर्य, रोग, खेद, भूख, प्यास, बुढ़ापा, पीडा, नींद, पसीना ये दोष जिसमें नहीं पाये जाते हों अर्थात् जो किसी भी पदार्थ से न प्रेम करता हो न किसी को बुरा समझता हो इसी प्रकार जिसको किसी प्रकार का अभिमान, डर, मोह, चिन्ता, भूख, प्यास आदि न हो उसको वीतराग कहते हैं। __ समस्त संसार को भूत, भविष्यत्, वर्तमान की समस्त बातों को पदार्थों की हालतों को जो एक साथ स्पष्ट जाने अर्थात् सारे संसार में जो पहले हो चुका है, अब हो रहा है और जा कुछ आगे होगा उसको जो ठीक ठीक जानने वाला हो वह सर्वज्ञ कहलाता है।