________________
( २० )
सबा गुरु जिसने घर, धन, स्त्री, पुत्र, मित्र, कपड़े, आभूषण आदि सारे संसारी पदार्थों को बुरा समझ छोड़ दिया हो, जो जङ्गल में रहकर आत्मा का ध्यान, तपस्या करता हो, दिन में एक बार शुद्ध अपने हाथों में गृहस्थों के घर भोजन करता हो । हिंसा, झूठ, चोरी, विषय-सेवन, परिग्रह (संसारी चीज़ों को अपनाना) इन पाँच पापों को बिलकुल छोड़ कर अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और परिग्रह त्याग ये पांच महाबत पालता हो। जो शत्रु से क्रोध न करे और मित्र से प्रेम भोव न करे शान्त, निःस्पृह, नग्न हो वह सबा गुरु है। इसको मुनि, साधु भी कहते हैं।
मुनियों में जो सबसे ऊँचे पद के होते हैं मुनि जिनकी आज्ञानुसार चलते हैं वे प्राचार्य कहलाते हैं। जो मुनियों में सबसे अधिक विद्वान होते हैं और जो मुनियों को पढ़ाते हैं वे उपाध्याय कहलाते हैं।
अर्हन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और मुनि (साधु) ये पांच परमेष्ठी ( सबसे अधिक ऊँचे पद पर विराजमान ) कहे जाते हैं। - इस प्रकार गृहस्थ जैन, इन देव, शास्त्र, गुरु को अपना पूज्य आराध्य समझकर इनका दर्शन, पूजन, विनय, सत्कार करते हैं, शास्त्र पढ़ते हैं।