Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

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Page 20
________________ ( १४ ) आदि फल देने की ताकत बड़ी पड़ जाती है । तथा यदि योगशक्ति मन्द हो आकर्षण करते समय जीव के भले, बुरे विचार हलके, मन्द हो तो कर्मों में मियाद थोड़ी पड़ेगी और फल देने को शक्ति भी मन्द ही पैदा होगी। जिस समय उस कर्म के फल देने का समय आवेगा तब वह कर्म जीव को अपनी उस शक्ति से ऐसा बना देगा जिससे जीव वाहरी चीजों के निमित्त से ऐसा कार्य कर बैठेगा जिसके कारण कर्म शक्ति के अनुसार उसको फल मिल जायगा। मान लीजिये सुख देने वाले कर्म का उदय ( समय ) आया है तो जीव की बुद्धि, क्रिया और बाहरी निमित्त साधन उसको ऐसे मिलेंगे जिससे उसको सुख पाने का अवसर (मौका ) मिल जावेगा । इसी प्रकार दुख देने वाले कर्म के उदय आने पर उसके कार्य, बुद्धि स्वयं दुख पैदा करने वाले पदार्थ, कार्य में लग जावेंगे। इस प्रकार कर्म यद्यपि अजीव हैं, जड़ हैं, ज्ञान रहित हैं किन्तु शराब, बिजली, गैस आदि पदार्थों के समान जीव के संयोग से विचित्र शक्तिशाली हो जाते हैं । यहाँ तक शक्ति (स्प्रिट) उनमें पैदा हो जाती है कि किये हुए अच्छे बुरे कर्तव्यों (कामों) के अनुसार अच्छे बुरे शरीर में जन्म धारण करने के लिये भी बेतार के तार के समान कर्म आत्मा को उस जगह पहुँचा देते हैं । सारांश यह है कि जैसे शराब मनुष्य को पागल बना देती है उसी प्रकार कर्म भी जीव को अपना समय आने पर एक

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