________________
होने की शक्ति है। जैसे कि चुम्बक पत्थर और लोहे के भीतर रहती है।
जिस समय कोई संसारी जीव काम, क्रोध, अभिमान, फरेब, लालच, प्रेम, बैर, डर, शोक, हर्ष, हिंसा, विषय सेवन, चोरी, परोपकार, दया, दान आदि किसी विचार कार्य या बोलने में लग जाता है। उस समय उस जीव की वह योग शक्ति अपने पास वाले कार्माण पुद्गल स्कन्धों को आकर्षण (कशिश ) कर लेती है। वे आकर्षित (कशिश किये हुए) पुद्गल आत्मा के साथ मिलकर एकमेक हो जाते हैं।
योग शक्ति से कशिश किये हुए और उसके पीछे आत्मा के साथ एकमेक मिले हुए पुद्गल स्कन्धों को ही कर्म कहते हैं। श्रात्मा के साथ मिल जाने पर उन कमों के भीतर विशेष शक्तियां उत्पन्न हो जाती हैं । आत्मा में उस समय जैसे विचार कार्य मौजूद हों उन नवीन कर्मों में वैसी ही शक्ति पैदा हो जाती है। जैसे अगर जीव का उस समय विचार परोपकार का हो तो कर्मो में शक्ति भला, लाभ (फायदा ) करने की पैदो होगी और यदि किसी का बुरा कराने का विचार उस जीव में हो तो उन कर्मों में बुरा करने की शक्ति पैदा हो जायगी।
कर्म बनने के साथ ही साथ उन कर्मों में जीव के साथ लगे रहने की अपनी शक्ति के अनुसार जीव को सुख दुख देने की स्थिति (मियाद समय की) भी पड़ जाती है। जीव की अगर तीव्र (तेज) योग शक्ति होती है कर्मों में मियाद और सुख दुख