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( १५ ) प्रकार का पागल बना देते हैं। इस प्रकार एक तरह से जोव कर्म करते समय स्वतन्त्र (आजाद) और उसका फल पाते. समय परतन्त्र (गुलाम ) होता है।
जीव हर एक समय किसी न किसी प्रकार का कर्म तैयार, करता रहता है और हर समय किसी न किसी कर्म का फल (नतीजा) भी उठाता रहता है। हां! यह अवश्य है कि यदि अपनी ज्ञान शक्ति से कर्म बनने के कारणों को अच्छे बुरे विचारों, कार्यों को कम कर दे तो कर्मों की शक्ति घटनी शुरू हो जायगी और जीव की शक्ति बढ़नी शुरू हो जायगी। यदि वह लगातार उस तरह करता रहे तो कोई समय ऐसा भी था जावेगा कि पुराने सब कर्म समाप्त (खतम) हो जायंगे और नया कर्म कोई भी न बन पावेगा । तब वह जीव पूर्ण स्वतंत्र (आजाद). हो जायगा। बन्धन से छूट जायगा, मुक्त हो जायगा और उसके समस्त आत्मिक गुण पूर्ण निर्मल हो जावेंगे। फिर कर्म बनने योग्य उसके पास कोई कारण न रहेगा इस कारण फिर जंजाल में भी नहीं फँस सकेगा।
कमों के भेद। कर्म आठ तरह के हैं । ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय । ___ जीव के ज्ञान गुण को कम करने वाला ज्ञानावरण कर्म है।
जीव के दर्शन गुण पर परदा डालने वाला कर्म दर्शनावरण होता है।