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( ११ ) की हालत में हवा का पुद्गल ( मैटर ) चखने में और देखने में 'आ जाता है।
श्राग में रंग, स्पर्श मालूम होते हैं रस, गन्ध मालूम नहीं होते किन्तु वे उसमें हैं अवश्य । उस समय सूक्ष्म रूप में हैं । हालत बदलने पर वे दोनों गुण भी मालूम होने लगते हैं।
शब्द पुद्गल है उसके तीन गुण सूक्ष्म हैं। किन्तु स्पर्श कुछ जाहिर होता है । शब्द पुद्गल है इसी कारण पुद्गल पदार्थों से ( बाजे, मुख, तोप आदि से ) वह पैदा होता है। टेलीफोन, 'ग्रामोफोन, लाऊड स्पीकर, बेतार का तार, तार आदि यन्त्रों से पकड़ में आ जाता है, बन्द कर लिया जाता है, दूर भेज दिया जाता है। बिजली, तोप आदि के भयंकर शब्द से कान के परदे फट जाते हैं, जोरदार शब्दों के आघात (टकर) से स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं, पहाड़ की चट्टानें गिर पड़ती हैं। ऐसी जोरदार टक्कर पुद्गल पदार्थ हुए बिना नहीं हो सकती।
फुद्गल की दशा।
पुद्गल दो दशाओं में होता है, परमाणु और स्कन्ध । 'परमाणु पुद्गल का सब से छोटा अखण्ड टुकड़ा है। उन टुकड़ों के आपस में मिलकर बने हुये बड़े टुकड़ों को स्कन्ध कहते हैं।
शब्द एक विशेष प्रकार का पुद्गल है। उसके स्कन्ध सब जगह भरे हुये हैं।