Book Title: Jain Dharm Parichaya
Author(s): Ajit Kumar
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ पदार्थ का नाम जैन सिद्धान्त में पुद्गल (मैटर ) बतलाया है। हम जितनी भी चीजें देखते हैं या अन्य नाक, जीभ, चमड़ा, कान इन्द्रियों से जिनको जानते हैं वे सब पुद्गल हैं। मकान, लकड़ी, पत्थर, कागज आदि सभी चीजें पुद्गल हैं। यहाँ तक कि जीव के रहने का शरीर भी पुद्गल है। जीविन शरीर में जीव पाया जाता है और निर्जीव यानी मृतक मुर्दा शरीर में जीव. नहीं होता केवल पुद्गल ही होता है। __दूसरे अजीव पदार्थ वे होते हैं जिनमें रंग, रस, गंध, ठंडक, गर्मी नहीं पाई जाती जो देखने में तथा अन्य भी इन्द्रियों से पकड़ने में नहीं आते । उनको अमूर्तिक कहते हैं। __ अमूर्तिक अजीव पदार्थ चार तरह का है। धर्म, अधर्म, आकाश और काल । जिसमें सब जीव, पुद्गल आदि पदार्थ रहते हैं। उस पोल पदार्थ का नाम आकाश है। यह पदार्थ अनन्त है। सब जगह मौजूद है। ___ जो चीज़ों की हालतें बदलने में सहायता करता है। वर्ष, महीना, दिन, घड़ी, घण्टा, मिनट, सैकिण्ड आदि नाम रखकर जिसका व्यवहार किया जाता है वह काल नामक पदार्थ है। जहाँ तक जीव, पुद्गल आदि पदार्थ पाये जाते हैं वहाँ तक काल भी मौजूद हैं। . ___जो जीव, पुद्गलों के हलन, चलन में बाहरी सहायता करता है। आते, जाते, गिरते, पड़ते, हिलते, चलते पदार्थ को उसकी हरकत में मदद करता है। उसका नाम धर्म पदार्थ है। जहाँ

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53