Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 11
________________ अंतः आशीष भद्रावती 5-3-2013 जिनशासन में ज्ञान की महिमा अपरंपार है, रत्नत्रयी में मध्य स्थान को पाया हुआ ज्ञान एक तरफ सम्यग् दर्शन की प्राप्ति , स्थिरता व शुद्धि का कारण बनता है तो दूसरी तरफ सम्यक् चारित्र की भी प्राप्ति, स्थिरता व शुद्धि-वृद्धि का कारण बनता है, अतः मोक्षमार्ग का मूल आधार है ज्ञान भव अटवी को पार पाने के लिए ज्ञान बिन घोर अंधकार है | अमृत है ज्ञान, जो क्रिया में यथार्थ प्राणों को संचार कर के उसे जीवंत व फलदायी बनाता है | ___ जैन धर्म दर्शन यह पाठ्यक्रम ज्ञान पिपासु आत्मार्थीयों हेतु एक सुंदर प्रारंभिक झरने का काम कर रहा है, अतीव प्रसन्नता का विषय है कि यह पाठ्यक्रम अपनी विवक्षित पूर्णता को प्राप्त कर रहा है। इसका छट्ठा व अंतिम खण्ड अब प्रकाश्यमान है। आदिनाथ जैन ट्रस्ट के पदाधिकारीयों के प्रयत्नों से डॉ. निर्मलाजी के अथक प्रयासों से लिखित यह पाठ्यक्रम इतने कम समय में करीब सारे भारत में आदेयता को प्राप्त कर रहा है । यह आनंद का विषय है । इस पाठ्यक्रम की सर्जन यात्रा की मैं प्रारंभ से ही साक्षी रही हूँ, निर्मलाजी के आत्मीय आग्रह के वश हो कर इस सारे पाठ्यक्रम की प्रेस कॉपी के निरीक्षण का पुण्यलाभ स्वाध्याय के रूप में मुझे प्राप्त हुआ, उसका मन में बडा हर्षाभास है | समय-समय पर कुछ सुझाव भी किए है। ____इस पाठ्यक्रम में शास्त्र निष्ठा को अक्षुण्ण रखते हुए मानों गायर में सागर को भरने का कार्य किया गया है । जिनशासन में ज्ञान की कोई सीमा नहीं, लेकिन फिर भी इस पाठ्यक्रम में प्राथमिक स्तर उपर उपयोगी अधिकांश विषयों को शक्य समावेश करने का प्रयत्न किया गया है। रंगीन चित्रों एवं आकर्षण साज-सज्जा के साथ इस पाठ्यक्रम ने अपनी एक अलग ही पहचान बनाई है। इस पावनीय प्रयास हेतु संलग्न सभी को अभिनंदन पूर्वक मेरा अंत करण से आशिर्वाद है। कामना है कि इस पाठ्यक्रम के अभ्यासु शीघ्र अपने कल्याण की प्राप्ति करें। साध्वी मणिप्रभाश्री POOOC Jain Education Intemational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org

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