Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06 Author(s): Nirmala Jain Publisher: Adinath Jain Trust View full book textPage 9
________________ 8-3-2013 सुकृत अनुमोदना ।। ऊँ अहँ नमः।। जैन धर्म दर्शन पाठ्यक्रम के इस छठे व अंतिम खंड का स्वागत करते हुए हर्ष की अनुभूति हो रही है। तीन वर्षों से ज्यादा लंबी यह यात्रा हर अपने पड़ाव पर नए शिखरों को छूती हई अब अपने विवक्षित अंतिम शिखर पर है, इन ज्ञान शिखरों पर चढ़-चढ़ कर स्वयं का दर्शन करना और इस स्व-दर्शन के माध्यम से मानो सारे संसार का दर्शन कर लेना एक अलग ही आनंद की अनुभूति करवाता है। __ कल्याण-निधान सर्वज्ञ तीर्थंकरों द्वारा प्ररूपित यह जैन धर्म आत्मा में आत्मा की प्रतिष्ठा का धर्म है, यही इस धर्म का मुख्य हेतु है, यहीं पर जीव के सारे दुःखों की विमुक्ति है । याद रहे कि यह पर में स्व की प्रतिष्ठा का धर्म नहीं है, अतः स्वाभाविक रूप से यही बात इस पाठ्यक्रम पर भी अक्षरशः लागू होती है | यह समग्र पाठ्यक्रम इसका हर शब्द हर अक्षर निज कल्याण के संदेशों से भरा पडा है | इन संदेशों को खोज कर आत्मसात करना यही इसके अभ्यास का मकसद हो सकता है | डिग्री या सर्टीफीकेट जैसी बातें इस अभ्यासक्रम का मकसद नहीं हो सकती, फिर भले ही लोकरूढी में इन का ही महत्व क्यूं न हो गया हों । लोकोत्तर बात का मकसद लौकिक नहीं हो सकता। इस पाठ्यक्रम की पूर्णता तक पहुँचने वाले आप सभी का अभिनंदन! आपने जैन धर्म का प्राथमिक परिचय प्राप्त कर लिया है। अब आपने कुछ योग्यता प्राप्त की है, कि अब आप आपकी बाट देख रहे जिन शासन के विराट ज्ञान सागर में गोते लगा सके । विनीत पात्र को गुरूगम से इसकी चाबीयाँ मिल सकती है। इस पाठ्यक्रम का वक्त की मांग के अनुरूप सर्जन कर इसके भारतभर में प्रचार-प्रसार हेतु मैं डॉ. निर्मलाजी एवं आदिनाथ ट्रस्ट के समग्र ट्रस्टीगण श्री मोहनजी आदि को साधुवाद देता हूँ | श्री संघ की सेवा में आगे भी इसी तरह की नई-नई ज्ञानांजलि अर्पण करते रहे ऐसी शुभेच्छा व आशिर्वाद । पंन्यास अजयसागर P Battalioniniamson ersone & Aluate Use Only ROOOOOOOK www.jainelibrary.orgPage Navigation
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