Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Jankari
Author(s): Purushottam Jain, Ravindra Jain
Publisher: Purshottam Jain, Ravindra Jain

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Page 17
________________ ਬੰਦਨਾਂ मंगलं भगवान वीरो, मंगलं गौत्तमो गणिः मंगलं स्थूलिभेद्राद्या, जैनधर्मोस्तु मंगलं सर्वमंगलमांगल्यं, सर्वकल्याणकारणम् प्रधानं सर्व धर्माणां, जैन जयजि शासनम् शिवमस्तु सर्व जगतः परहितनिरता भवन्तु भूतगणाः दोषाः प्रयान्तु नाशं सर्वत्र सुखी भवतु लोकः अर्हन्तो भगन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्न सिद्धिस्थिताः आचार्या जिनशासनो तकरा, पूज्या उपाध्यायकाः श्री सिद्धांन्त-सुपाठका मुनिवरा रत्नत्रया राध का पञ्चैते परमंष्ठिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु नो मंगलम् भवबीजांकुन जनना, रागद्या क्षयमुपागता यस्य ब्रह्मा व विष्णर्वा हऐ व चिनो व नमस्तस्मे सकल शान्ति सुधारससागरं युचितरं गुणरत्नमहाकरं भविक पंकज़ वोध दिवाक्रम प्रतिदिन प्रणमामि जिनेश्वरम

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