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इतिहास किया है। इससे स्पष्ट है कि अमोघवर्षने गुजरातपर भी शासन किया और उसके राज्यमें जैनधर्म खुब फूला फला।
राष्ट्रकूटोंके हाथसे निकलकर गुजरात पश्चिमी चालुक्योंके अधिकारमें चला गया। फिर चावडावंशी वनराजने इसपर अपना अधिकार कर लिया। इस वनराजका लालनपालन एक जैनसाधुकी देखरेख में हुआ था। जिसके प्रभावसे यह जैनधर्मी हो गया। जब इस राजाने अणहिलवाड़ाकी स्थापना की नब उममें जैनमन्त्रोंका ही उपयोग किया गया था तथा इसने एक जनमन्दिर भी उस नगरमें बनवाया था। चावड़ावंशसे निकलकर गुजरात पुनः चालुक्योंके अधिकार में चला गया। ये लोग भी जैनधर्म पालते थे। इनके प्रथम राजा मूलराजने अणहिलवाड़ामें एक जनमन्दिरका निर्माण कराया। भीम प्रथमके समयमें उसके सेनापति विमलने आबू पर्वतपर प्रसिद्ध, जैनमन्दिर बनवाया जिसे 'विमलवसही' कहते हैं। सिद्धराज जयसिंह बहुत प्रसिद्ध, राजा हुआ है। इसपर जैनाचार्य हेमचन्द्रका बड़ा प्रभाव था। इसके नामपर आचार्यने अपना सिद्धहेम व्याकरण रचा। यद्यपि इसने जैनधर्मको अंगीकार नहीं किया, किन्तु आचार्यके कहनेसे मिद्धपुरमें महावीर स्वामीका मन्दिर बनवाया और गिरनार पर्वतकी यात्रा भी की।
जयसिंहके बाद कुमारपाल गुजरातकी राजगहीपर बैठा । इसपर हेमचन्द्राचार्यका बहुत प्रभाव पड़ा और इसने धीरे-धीरे जैनधर्म स्वीकार कर लिया। उसके बाद इस राजाने मांसाहार और शिकारका भी त्याग कर दिया, तथा अपने राज्यमें भी पशुहिंसा, मांसाहार और मद्यपानका निषेध कर दिया । कमाइयोंको तीन वर्षकी आय पेशगी दे दी गई। ब्राह्मणोंको यज्ञमें पशुके बदले अनाजसे हवन करनेकी आज्ञा दी। इमने अनेक जैनतीर्थोंकी यात्रा की, अनेक जैनमन्दिरोंका निर्माण कराया । इसके समयमें आचार्य हेमचन्द्रने अनेक ग्रन्थोंको रचना की।
चालुक्योंका अस्त होनेपर १३ वीं शताब्दीमें बघेलोंका