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जैनधर्म में कदम्बोंने और उत्तरपूर्वमें पल्लवोंने राज्य किया। कदम्बवंशक अनेक शिलालेख मिले हैं, जिनमेंसे बहुतसे लेखोंमें जैनोंको दान देनेका उल्लेख मिलता है। इस राजवंशका धर्म जैन था । सन १९२२-२३ की एपिग्राफी रिपोर्ट में वर्णित है कि वनवासीके प्राचीन कदम्ब और चालुक्य, जिन्होंने पल्लवोंके पश्चात् तुलुव देशमें राज्य किया, निस्सन्देह जैन थे। तथा यह भी बहुत संभव है कि प्राचीन पल्लव भी जैन थे; क्योंकि संस्कृतमें मत्तविलास नामका एक प्रहसन है जो पल्लवराज महेन्द्रदेववर्माका बनाया हुआ कहा जाता है । इस ग्रन्थमें उस समयके प्रचलित सम्प्रदायोंकी हँसी उड़ाई गई है, जिनमें पाशुपत, कापालिक और एक बौद्ध भिक्षुको हँसीका पात्र बनाया गया है । इनमें जैनोंको सम्मिलित नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि जिस समय महेन्द्र वर्माने इस ग्रन्थको रचा उस समय वह जैन था तथा पीछेसे शैव हो गया क्योंकि शैव-परम्परामें ऐसी ख्याति है कि शैव साधु अप्परने महेन्द्रवर्माको शैव बनाया था। अतः कदम्बोंकी तरह चालुक्य भी जैनधर्मके प्रमुख आश्रयदाता थे। चालुक्योंने अनेक जैनमन्दिर बनवाये, उनका जीर्णोद्धार कराया, उन्हें दान दिया
और कनड़ीके प्रसिद्ध जैन कवि आदि पम्प जैसे कवियोंका सम्मान किया।
इसके सिवा इतिहाससे यह भी पता चलता है कि कर्नाटकमें महिलाओंने भी जैनधर्मके प्रचार में भाग लिया है। इन
8. "Ewly kadanabats of Banbasi and Chalukyas, who succeedel pallavas its overlords of Tuut were undoutedly Jains and it is probable that early pailevas tiere the same."
२. 'साउथ इण्डियन हिस्ट्री एण्ड कल्चर', भा० १, पृ० ५८४ । ३. स्मिथ-अर्ली हिस्ट्री आफ़ इण्डिया, पृ० ४४४ ।