Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 374
________________ ३५२ जैनधर्म पुरानी बस्ती है। यहाँ भूगर्भ में एक अतिविशाल जैन मन्दिर है। इसमें अनेक विशाल जैन प्रतिमाएँ हैं। सब प्रतिमाएँ ५७७ हैं। द्वारके उत्तर भागमें एक ही पाषाणका १० फुट ऊँचा कीर्तिस्तम्भ है, इसमें चारों ओर दिगम्बर-प्रतिमाएँ खुदी हुई हैं, तीन तरफ लेख भी हैं। मक्सीपाश्र्वनाथ-ग्वालियर रियासतमें सेन्ट्रल रेलवेकी भूपाल-उज्जैन शाखामें इस नामका स्टेशन है। यहाँसे एक मीलपर एक प्राचीन जैन मन्दिर है। उसमें श्रीपार्श्वनाथ स्वामीकी ढाई फुट ऊँची पद्मासन मूर्ति विराजमान है जो बड़ी ही मनोज्ञ है। इसको दोनों सम्प्रदायवाले पूजते हैं। परन्तु समय नियत है। सुबह ६ से 8 तक दिगम्बर सम्प्रदायवाले पूजते हैं फिर शेष समय श्वेताम्बरोके लिये नियत है । विजौलिया पार्श्वनाथ-नीमचसे ६८ मीलपर विजौलिया रियासत है। विजौलिया गाँवके समीपमें ही श्री पार्श्वनाथ स्वामीका अतिप्राचीन और रमणीय अतिशय क्षेत्र है। एक मन्दिरमें एक ताकके महाराबके ऊपर २३ प्रतिमाएँ खुदी हुई हैं। चारों तरफ दोवारोंपर भी मुनियोंकी बहुत सी मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। एक विशाल सभामण्डप, चार गुमटियाँ और दो मानस्तम्भ भी हैं। मानस्तम्भोंपर प्रतिमाएँ और शिलालेख हैं। श्रीऋषभदेव (केशरियाजी)-उदयपुरसे करीब ४० मीलपर यह क्षेत्र है। यहाँ श्रीऋषभदेवजीका एक बहुत विशाल मन्दिर बना हुआ है। उसके चारों ओर कोट है । भीतर मध्यमें संगमरमरका एक बड़ा मन्दिर है जिसके ४८ ऊँचे ऊँचे शिखर हैं। इसके भीतर जाने से श्रीऋषभदेवजीका बड़ा मन्दिर मिलता है, जिसमें श्रीऋषभदेवकी ६-७ फुट ऊँची पद्मासनयुक्त श्यामवर्णकी दिगम्बर जैनमूर्ति है। यहाँ केशर चढ़ानेका इतना रिवाज है कि सारी मूर्ति केशरसे ढक जाती है । इसीलिये इसे केशरियाजी भी कहते हैं। श्वेताम्बरोंकी ओरसे मूर्तिपर आंगी,

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