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विविध
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विषयोंपर उसका पक्षपात यह बतलाता है कि इसके विचारोंके ऊपर जैनधर्मका, खास करके दिगम्बर सम्प्रदायका असर था। अबुलू अला बहुत समयतक बगदादमें रहा था । यह नगर व्यापारका केन्द्र था । सम्भव है कि जैन व्यापारी वहाँ गये हों और उनके साथ कविका सम्बन्ध हुआ हो ।
उसके लेखोंपरसे जाना जाता है कि उसे भारत के अनेक धर्मोंका ज्ञान था । भारतके साधु नख नहीं काटते इस बातका उसने उल्लेख किया है। मुर्दा जलानेकी पद्धतिकी प्रशंसा करता है । भारतके साधु चिताकी अग्निज्वालामें कूद पड़ते हैं इस बातपर अबुल अलाको बहुत आश्चर्य हुआ था । मृत्युके इस ढंगको जैन अधर्म मानते हैं । 'बन सके तो केवल आहारका त्याग करो' अबुल अलाके इस वचन से यह अनुमान किया जा सकता है कि उसे जैनोंके सल्लेखनाव्रतका ज्ञान था । किन्तु यह व्रत वह स्वयं पाल सकता इतना उसका आत्मा सबल नहीं था । इन सब बातोंसे ऐसा लगता है कि अबुल् अला जैनोंके परिचयमें आया था और उनके कितने ही धार्मिक सिद्धान्तोंको उसने स्वीकार किया था ।'