Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 401
________________ विविध ३७९ विहार करते थे, बुद्धकी ही तरह उनके अनेक शिष्य थे, उनका एक संघ भी था और यह संघ बराबर फैलता गया, किन्तु भारतकी सीमाके बाहर उसका फैलाव न हो सका। महावीर और बुद्धके जीवनका उक्त विश्लेषण करते हुए जर्मन विद्वान् प्रो० लुइमानने आगे लिखा है-"महावीर संकुचित प्रकृतिके थे और बुद्ध विशाल प्रकृतिके थे। महावीर लोकसमाजमें मिलनेसे दूर रहते थे और बुद्ध लोकसमाजको सेवा करते थे। यह बात इस प्रसंगसे और भी स्पष्ट हो जाती है कि यदि बुद्धको उनका कोई शिष्य जीमनेका निमंत्रण देता था तो वह उसे स्वीकार करके उसके घर चले जाते थे, किन्तु महावीर यह मानते थे कि समाज जीवनके साथ साधुका इस प्रकारका सम्बन्ध ठीक नहीं है। यह बात इससे और भी अधिक स्पष्ट हो जाती है कि बुद्ध विहार करते समय जिस तिसके साथ बातें करते जाते थे और अपने विचार और आचारमें फेरफार करनेके साथ-साथ लोगोंको उपदेश देने और अपनेमें सम्मिलित करनेकी पद्धतिमें भी फेरफार कर लेते थे! किन्तु महावीरमें यह बात नहीं पाई जाती। आध्यात्मिक उपदेश करने या शिक्षा देनेके लिये महावीरने किसीको बुलाया हो ऐसा जान नहीं पड़ता। यदि कोई मनुष्य धार्मिक चर्चा करनेके लिये उनके पास जाता था तो महावीर अपने कठिन सिद्धान्तोंके अनुसार उसका उत्तर मात्र दे देते थे, किन्तु उसकी परवा नहीं करते थे।' ___ अतः ऊपर बतलाये गये कारणोंसे जैनधर्म और बौद्धधर्म दोनों स्वतंत्र धर्म हैं, एकसे दूसरा नहीं निकला है। फिर भी दोनों धर्म सदीर्घ कालतक एक ही क्षेत्रमें फले-फूले हैं अतः एकका असर दूसरेपर न हुआ हो, यह संभव नहीं है। ३. जैनधर्म और मुसलमानधर्म इस्लामका उदय यद्यपि अरबमें हुआ किन्तु शताब्दियों तक दोनों धर्मोंका भारतके नाते निकट सम्बन्ध रहा है। और फल

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