Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 381
________________ विविध ३५९ हैं । सभी मन्दिर दिगम्बर सम्प्रदायके हैं और उच्चकोटिकी कारीगरीको व्यक्त करते हैं। श्रवणबेलगोला-हासन जिलेके अन्तर्गत जिन तीन स्थानोंने मैसूर राज्यको विश्वविख्यात बना दिया है वे हैं वेलूर, हलेवीड और श्रवण वेलगोला। हासनसे पश्चिममें श्रवणवेलगोला है जो हासनसे मोटरके द्वारा ४ घंटेका मार्ग है। श्रवणवेलगोलामें चन्द्रगिरि और विन्ध्यगिरि नामकी दो पहाड़ियाँ पास पास हैं। इन दोंनों पहाड़ियोंके बीचमें एक चोकोर तालाब है। इसका नाम वेलगोल अथवा सफेद तालाब था। यहाँ श्रमणोंके आकर रहनेके कारण इस गांवका नाम श्रमण वेलगोल पड़ा । यह दिगम्बर जैनोंका एक महान तीर्थ स्थान है। मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त अपने गुरु भद्रबाहुके साथ अपने जीवनके अन्तिम दिन बितानेके लिये यहाँ आया था। गुम्ने वृद्धावस्था के कारण चन्द्रगिरिपर सल्लेखना धारण करके शरीर त्याग दिया । चन्द्रगुप्तने गुरुकी पादुकाकी बाहर वर्ष तक पूजा की और अन्तमें समाधि धारण करके इह जोवन लीला समाप्त की। विन्ध्यगिरि नामकी पहाड़ीपर गोमटेश्वरकी विशालकाय मूर्ति विराजमान है। विन्ध्यगिरिकी ऊचाई चारसौ सत्तर फीट है और ऊपर जानेके लिये सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। काका कालेलकरके शब्दोंमें मूर्तिका सारा शरीर भरावदार, यौवनपूर्ण नाजुक और कान्तिमान है। एक ही पत्थरसे निर्मित इतनी सुन्दर मूर्ति संसारमें और कहीं नहीं। इतनी बड़ी मूर्ति इतनी अधिक स्निग्ध है कि भक्तिके साथ कुछ प्रेमकी भी यह अधिकारिणी बनती है । धूप, हवा और पानीके प्रभावसे पीछेकी ओर ऊपरकी पपड़ी खिर पड़नेपर भी इस मूर्तिका लावण्य खण्डित नहीं हुआ है। इसकी स्थापना आजसे एक हजार वर्ष पहले गंगवंशके सेनापति और मंत्री चामुण्डरायने कराई थी। इस पर्वतपर छोटे बड़े सब १० मन्दिर हैं। चन्द्रगिरिपर चढ़नेके लिये भी सीढ़ियाँ बनी हैं। पर्वतके

Loading...

Page Navigation
1 ... 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411