Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 383
________________ विविध ३६१ होगा; क्योंकि उससे उक्त बातोंपर अधिक प्रकाश पड़नेके साथ ही साथ जैनधर्मकी स्थितिको समझने में तथा अनेक भ्रामक धारणाओंके दूर होनेमें अधिक सहायता मिल सकेगी । भारतीय धर्मो में हिन्दू धर्म और बौद्धधर्म ये दो ही धर्म ऐसे हैं, जिनके साथ जैनधर्मका गहरा जोड़-तोड़ रहा है। भारतीय होनेके नाते तीनों ही साथ साथ रहे हैं, प्रत्येकने शेष दोनोंके उतार या चढ़ाव के दिन देखे हैं, और परस्पर प्रहार किये और झेले हैं, फिर भी एककी दूसरेके ऊपर छाप पड़े बिना नहीं रही है। १. जैनधर्म और हिन्दूधर्म यहाँ हिन्दूधर्मसे मतलब वैदिक धर्मसे है, जिसे सनातनधर्म भी कहा जाता है, क्योंकि अब यह शब्द इसी अर्थ में रूढ़ कर दिया गया है । कहनेके लिये 'हिन्दू' शब्दकी ऐसी व्याख्याएँ भी की जाती हैं जिनसे जैनधर्म भी हिन्दूधर्म कहा जा सकता है, किन्तु एक तो रूढ़के सामने यौगिक शब्दार्थको कौन मानता और जानता है ? दूसरे, उन व्याख्याओंके पीछे प्रायः यह भाव पाया जाता है कि जैनधर्म हिन्दूधर्म के नामसे कहे जानेवाले वैदिकधर्मकी विद्रोही कन्या है। किन्तु जिन निष्पक्ष विद्वानोंने जैनधर्मका गहरा आलोडन किया है वे उसे भारतका एक स्वतंत्र धर्म मानते हैं । दोनों धर्मोके तत्त्वोंपर दृष्टि डालने से भी यही निष्कर्ष निकलता है। तथा इस बातका निर्णय दोनों धर्मो शास्त्रोंकी अन्तरिक्ष साक्षीके आधारपर ही किया जा सकता है; क्योंकि अन्य कोई बाह्य प्रमाण ऐसा नहीं मिलता जो इस समस्यापर प्रकाश डाल सके । सबसे प्रथम हम वैदिक साहित्यके क्रमिक विकासका परिचय उन भारतीय दार्शनिकोंके साहित्यके आधारपर कराते हैं जो उपनिषदों को ही सब दर्शनोंका मूल आधार बतलाते हैं। इतिहासज्ञोंने भारतीय दर्शनका काल विभाग इस प्रकार

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