Book Title: Jain Dharm
Author(s): Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 380
________________ ३५८ जैनधर्म हैं । एक मन्दिर पास ही तालाब में है । यद्यपि मन्दिर छोटा है परन्तु बहुत सुन्दर है । कारकल-वरांगसे १५ मीलपर यह एक अच्छा स्थान है । यह दिगम्बर जैनोंका बहुत प्राचीन तीर्थ स्थान है। यहाँ १८ जैन मन्दिर हैं । एक पर्वतपर श्रीबाहुबलि स्वामीकी ३२ फीट ऊँची खड़े आसनवाली मूर्ति विराजमान है। इसके सामने एक दूसरा पर्वत हैं, उसपर एक मन्दिर है । उसमें चारों ओर खड़े आसनकी तीन विशाल प्रतिमाएँ स्थित हैं । यह मन्दिर कारीगरीकी दृष्टिसे भी दर्शनीय है । मूडबिद्री - कारकलसे दस मीलपर यह एक अच्छा कसबा है । यहाँ १८ मन्दिर हैं जिनमें एक मन्दिर बहुत विशाल है । उसका नाम त्रिभुवन तिलक चूड़ामणि है। यह एक कोटसे घिरा है । तीन मंजिलका है । नीचे ८ वेदियाँ हैं, इसके ऊपर ४ वेदियाँ है और उसके भी ऊपर तीन वेढ़ियाँ हैं । एक मन्दिर सिद्धान्तवसति कहलाता है । यह दुमंजिला है । इस मन्दिरमें दिगम्बर जैनोंके प्रख्यात ग्रन्थ श्रीधवल, जयधवल और महाबन्ध कनड़ी लिपिमें ताड़पत्रोंपर लिखे हुए सुरक्षित हैं । इसमें ३७ मूर्तियाँ पन्ना, पुखराज, गोमेद, मूँगा, नीलम आदि रत्नों की हैं। यहाँ श्रीभट्टारक चारुकीर्ति पंडिताचार्य महाराजकी गड़ी है। प्राचीन जैन ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह है । वेणूर - नदीके किनारे यह एक छोटा-सा गाँव है । गाँव के पश्चिम में एक कोट है । उसके अन्दर श्रीगोमट स्वामीकी ३१ फुट ऊँची प्रतिमा विराजमान है । गाँवमें अनेक जैन मन्दिर हैं। वेलूर - हलेविड - वेलूर और हलेवीड़, मैसूर राज्यके हासन शहरके उत्तर में एक दूसरेसे दस बारह मीलके अन्तरपर स्थित हैं । यहाँका मूर्तिनिर्माण दुनियामें अपूर्व माना जाता है । एक समय यह दोनों स्थान राजधानीके रूपमें मशहूर थे आज कलाधानीके रूपमें ख्यात हैं। दोनों स्थानोंके आस-पास जैन मन्दिर

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